ललिता सहस्त्रनाम- हिन्दी व्याख्या- 894- 908
-------------------------------------- निरुपमा गर्ग
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before Navratri 2025.
894. ॐ अयोन्यै नमः- हे जगत जननी ! न आप की उत्पत्ति हुई और न ही आपका कोई
निवास है अर्थात आप सब जगह विराजमान हो, आपको नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
895. ॐ योनि निलयायै नमः- हे 'ब्रह्म-स्वरूपा ! आप प्रकृति रूप में सृष्टि का
कारण हो व सृष्टि-उत्पत्ति
का स्रोत हो । आपको नमस्कार,
बार-बार नमस्कार हो ।
896. ॐ कूटस्थायै नमः- आप अपरिवर्तनीय, स्थिर और अचल (ब्रह्म) हो ।
आपको नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
897. ॐ कुलरूपिण्यै नमः- मैं उस कौल पथ की देवी को नमस्कार करती हूं जिनकी
बाएं हाथ से शक्ति की उपासना करने वाले शाक्तों के लिए उनकी पूजा में पालन किए जाने
वाले अधिकार कुल कहलाते हैं ।
898. ॐ वीरगोष्ठीप्रियायै नमः- जो लोग अपनी इन्द्रियों पर विजय पा लेते हैं
ऐसे वीर गोष्ठी, साहसी, और पराक्रमी ज्ञानी पुरुषों की सभाजनों
की प्रिया, आपको नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
899. ॐ वीरायै नमः- हे देवी ! मैं आप के उस शक्तिशाली और साहसी रूप
को नमस्कार करती हूँ जिससे आपने राक्षसों का वध किया था ।
900. ॐ नैष्कर्म्यायै नमः- मैं उन भगवती को प्रणाम करती हूं जो कर्म बन्धनों
से मुक्त हैं ।
901. ॐ नादरूपिण्यै नमः- मैं नाद रूपिणी देवी को प्रणाम
करती हूँ |
902. ॐ विज्ञान कलनायै नमः- मैं ब्रह्म ग्यानी तथा चौदह विद्याओं को जानने वाली
देवी भगवती को प्रणाम करती हूं ।
903. ॐ कल्यायै नमः- उस माँ ललिता देवी को, जो सुख, समृद्धि, और कल्याण का प्रतीक हैं,
मैं नमस्कार करती हूँ।"
904. ॐ विदग्धायै नमः- जो चतुर, ग्यानी, वीरांगना और मोहिता तथा सर्व गुण सम्पन्न हैं,
उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
905. ॐ बैन्दवासनायै नमः- जो श्री चक्र के मध्य बिन्दू में स्थित हैं उन श्री
महा त्रिपुर सुन्दरी को बार- बार प्रणाम स्वीकार हो ।
906. ॐ तत्त्वाधिकायै नमः- आप पाँच मूल तत्व वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी+
पांच कर्मेन्द्रियां++पांच ग्यानेन्द्रियां++पांच
तन्मात्राएं- ध्वनि, स्वाद, गंध, प्रकाश और
स्पर्श++एक अंत:करण= 24+12 शिव और शक्ति के तत्व
[1. प्रकाश , 2. विमर्श ,
3. सादाख्य , 4. ऐश्वर्य ,
5. शुद्ध विद्या , 6. कला , 7. विद्या , 8. राग , 9. कला ,
10. नियति , 11. पुरुष और 12. प्रकृति ] इन 36 तत्वों से परे हैं ।
907. ॐ तत्त्वमय्यै नमः- आप 36 तत्वों का वास्तविक सार हैं ।
आप ब्रह्म हैं इसलिए इन तत्वों से परे हैं, आप प्रकृति हैं इसलिए तत्वमयी
अर्थात इन तत्वों में मौजूद भी हैं जिनसे आप सृष्टि चलाती हैं परन्तु
स्वयं इनसे प्रभावित नहीं होतीं ।
908. ॐ तत्त्वमर्थ स्वरूपिण्यै नमः- -
"तत" शब्द अद्वैत सत्ता (ब्रह्म) का प्रतिनिधित्व करता है
"त्वम" शब्द जीव का प्रतिनिधित्व करता है।
अर्थात आप अर्थ के रूप में अद्वैत सत्ता के साथ जीव का प्रतिनिधित्व करती हो, आपको
बार-बार नमस्कार हो ।
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