ललिता सहस्त्रनाम- हिन्दी व्याख्या- 909-924
-------------------------------------- निरुपमा गर्ग
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before Navratri 2025.
· 90 909. ॐ सामगान+प्रियायै नमः-हे सामवेद की संगीतमय स्वरों में गाई वाली ऋचाओं
की प्रिया, आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
910. ॐ सौम्यायै नमः- हे चन्द्रमा के समान शुभ,प्रसन्न,सुखद,प्रसन्न वदने !
आप “सोम याग” अर्थात सामवेद के मंत्रों के क्रम द्वारा पूजने योग्य हो ।
आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
911. ॐ सदाशिव कुटुम्बिन्यै नमः- हे सदाशिव भार्या । आपको प्रणाम ।
912. ॐ सव्यापसव्य मार्गस्थायै नमः- सव्य अर्थात दाहिना हाथ- सव्य वैदिक विधियों
से पूजा में अनुष्ठान करने के लिए केवल दाहिने हाथ का उपयोग किया जाता है।
अपसव्य का अर्थ है बायां हाथ- अपसव्य तांत्रिक विधियों से पूजा में केवल बाएं
हाथ का उपयोग किया जाता है।
और मार्ग का अर्थ है - मार्ग (संभवतः सव्य और अपसव्य के बीच का मध्य मार्ग)।
भक्त किसी भी मार्ग से उनकी पूजा करें, मां ललिता हर मार्ग पर स्थित
रहती हैं ।
913. ॐ सर्वापद्विनिवारिण्यै नमः- सभी कष्टों और बाधाओं को दूर करने वाली
करुणामयी मां को बार- बार प्रणाम।
914. ॐ स्वस्थायै नमः- हे स्वतंत्र प्रकृति वाली देवी ! मैं स्वास्थ्य, कल्याण, और रोग
मुक्ति के लिए प्रार्थना करती हूं । कृपया अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रहिए ।
915. ॐ स्वभाव मधुरायै नमः- स्वभाव से मधुर, सुखद, आकर्षक
और आनंदमयी माता को बार-बार प्रणाम ।
916. ॐ धीरायै नमः- आप धीर और बुद्धिमान हो तथा शरणागतों को
अद्वैत का ज्ञान आप ही प्रदान करती हो ।
917. ॐ धीर समर्चितायै नमः- जो देवी विद्वानों द्वारा पूजी जाती हैं
उन्हें प्रणाम, बार-बार प्रणाम ।
918. ॐ चैतन्यार्घ्य समाराध्यायै नमः- जिनकी पूजा चेतना के साथ आहुति
के रूप में की जाती है., उन्हें प्रणाम, बार-बार प्रणाम ।
919. ॐ चैतन्य-कुसुम-प्रियायै नमः- अहिंसा , इन्द्रियों पर विजय पाना,
जीवों पर दया करना, करुणा, ज्ञान, तप, सत्य और ध्यान –ये
चेतनता के आठ कुसुम पुष्प मां को सबसे अधिक प्रिय हैं ।
पौधों से तोड़े गए फूल इनके आगे तुच्छ हैं । चैतन्य-कुसुम-प्रिया
के नाम से जानी जाने वाली त्रिपुर सुन्दरी को बार- बार नमस्कार हो ।
920. ॐ सदोदितायै नमः- जो सदैव प्रकाशमान रहती हैं
उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार ।
921. ॐ सदा+तुष्टायै नमः- सदा संतुष्ट रहने वाली देवी को प्रणाम ।
922. ॐ तरुणादित्य पाटलायै नमः- जो सुबह के सूरज की तरह लाल सूर्ख हैं
उन्हें प्रणाम, बार-बार प्रणाम ।
923. ॐ दक्षिणा+ दक्षिणाराध्यायै नमः- आप दक्षिणा अर्थात दक्षिणाचारी ज्ञानी जोमानसिक रूप से ब्रह्म की खोज करते हैंं, और बदले में मोक्ष के अलावा कुछ भी नहींचाहते और दूसरे अदक्षिणाचारी अर्थात अज्ञानी जो कर्मकांडों से जुडे रहते हैंऔर बदले में कुछ पाने की उम्मीद करते हैं- दोनों प्रकार के भक्तों के द्वारापूजी जाती हो । आप को नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
924. ॐ दरस्मेर मुखाम्बुजायै नमः- जिनका चेहरा कमल के फूल के समान मुस्कान से
सुशोभित है, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
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=================================अगला लेख-----925-939
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