

-----------------------निरुपमा गर्ग
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before Navratri 2025.
847. ॐ तलोदर्यै
नमः- हे त्रिपुर सुन्दरी । तल अर्थात पृथ्वी के आधार रूप में आपको
बार-
बार नमस्कार हो ।
848. ॐ
उदारकीर्तये नमः- आपकी उदारता की कीर्ति सम्पूर्ण जगत में
विख्यात
है, आपको बार- बार नमस्कार हो ।
849. ॐ
उद्दामवैभवायै नमः- "नमन है आपकी शक्ति को जो महान और अद्भुत
है।"
850. ॐ
वर्णरूपिण्यै नमः- आप
"वर्ण" (अक्षर, भाषा) और
"रूपिणी"
(रूप धारण करने वाली) शब्दों का संयोजन हो तथा
मंत्रों का शुद्ध उच्चारण
आपकी स्तुति की एक कला है
जो साधक को पूजा का पूरा फल प्रदान करती है |
851. ॐ
जन्म मृत्यु जरा तप्तजन विश्रान्ति दायिन्यै नमः- आप जन्म, मृत्यु, और बुढ़ापे (जरा) से पीड़ित लोगों को शांति और आराम प्रदान करती
हैं, आपको मेरा नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
852. ॐ
सर्वोपनिषदुद् घुष्टायै नमः- "ॐ, सर्वोपरि, सभी उपनिषदों के द्वारा महिमा मण्डित की गई
देवी को नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
853. ॐ
शान्त्यतीता कलात्मिकायै
नमः- असीम
शान्त व कलात्मक रूपा को नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
854. ॐ
गम्भीरायै नमः- [ गं- गणपति, भी-
भय, रा- दूर भगाना ] अर्थात हे गजानन-
माता ! आप सब के दु:ख, भय, शोक आदि को दूर करने वाली अथाह शक्ति हो । आपको
नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
855. ॐ
गगनान्त स्थायै नमः- आप आकाश में स्थायी रूप से
रहती हो और वायु, जल, अग्नि,
पृथ्वी और आकाश- इन पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हो । आपको नमस्कार, बार- बार
नमस्कार हो ।"
856. ॐ
गर्वितायै नमः – यद्यपि आपके
पास गर्व करने के बहुत से कारण हैं फिर भी आप
निर्मदा
अर्थात अभिमान रहित हो । आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
857. ॐ गान लोलुपायै नमः – हे संगीत-प्रिया । आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।"
858. ॐ
कल्पना रहितायै नमः- कल्पना
(कल्पना) से परे, अर्थात् निर्गुण रूप से अस्तित्व में
रहने वाली देवी को प्रणाम स्वीकार हो ।
859. ॐ
काष्ठायै नमः- कठोपनिषद (I.iii.11)
में कहा गया है, " सा काष्ठा सा परा गतिः "
अर्थात "वह अर्थात आप चरम सीमा, परम गति और अन्तिम सत्य हैं ।
"न इति" अर्थात आप से आगे और कुछ भी नहीं है ।
860. ॐ
अकान्तायै नमः- मैं देवी अकान्ता को नमन करती हूँ जो "सृष्टि में प्रेम, सौंदर्य और आनंद का
प्रतीक हैं ।
861. ॐ
कान्तार्ध विग्रहायै नमः – हे
अर्धनारीश्वरा ! आपको शत-शत प्रणाम ।
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