ललिता सहस्त्रनाम- हिन्दी व्याख्या- 625 -659

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     ---------------------------------------------निरुपमा गर्ग

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before Navratri 2025.

625. ॐ कैवल्य पद दायिन्यै नमः – जो भक्तों को कैवल्य पद देकर मुक्ति

        प्रदान करने वाली हैं, तथा-

626. ॐ त्रिपुरायै नमः – जो ब्रहा, विष्णु, महेश- तीनों रूपों में विद्यमान हैं, 

      जो इच्छा, ग्यान और क्रिया शक्ति हैं , जो सृष्टि कर्ता,सृष्टि पालन हारा  व 

     सृष्टि का संहार करने वाली हैं, जो  इड़ा पिंगला और सुषुम्ना- 

       तीन नाडियां हैं, जो भूर्भुवः स्वः. स्वाहा –तीन पवित्र शब्द हैं , 

     जो सात्विक, राजस, तामस-तीन गुण हैं, इसलिए 

      त्रिपुर सुन्दरी कहलाती हैं।  उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

627. ॐ त्रिजगद्वन्द्यायै नमः – जो भू लोक, स्वर्ग लोक व "अंतरिक्ष" – 

       इन तीनों लोकों में पूजी जाती हैं,

 628. ॐ त्रिमूर्त्यै नमः- जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश- इन तीनों की शक्ति स्वरूपा हैं, तथा-

 629. ॐ त्रिदशेश्वर्यै नमः- जो सभी देवी-देवताओं की ईश्वरी हैं, उन्हें बारम्बार 

  नमस्कार हो । 

630. ॐ त्र्यक्षर्यै नमः – जो तीन बीज अक्षरों  ऐं (aim), ह्रीं (hrīṁ), and श्रीं (śrīṁ).” 

   में निवास करती हैं

631. ॐ दिव्य गन्धा ढ्यायै नमः- जो दिव्य सुगन्ध से सम्पन्न रहती हैं

632. ॐ सिन्दूरतिलकाञ्चितायै नमः- जिनके माथे का सिन्दूर समृद्धि का प्रतीक है,तथा-

633. ॐ उमायै नमः-   जो हिमालयराज के घर जन्मी इच्छा शक्ति हो, शंकर जी की पत्नी 
         उमा महेश्वरी कहलाती हैं । जिनके नाम के तीन पावन अक्षर – उ+ म+ अ हैं ।
         क्रमश: नाम का पहला अक्षर   सृजन का द्योतक है,  विनाश का तथा
         पोषण का प्रतीक है । उन्हें बार-बार नमस्कार हो ।
634. ॐ शैलेन्द्र तनयायै   नमः- जो जड, अडिग और अचल शैलेंद्र अर्थात हिमवान के
          घर जन्मी शुद्ध चेतना हैं तथा संसार को संदेश देती हैं कि जड में भी प्राणियों 
          की भांति चेतना होती है । 
635. ॐ गौर्यै नमः- जिनका रूप ऐसा दिखता है मानो यह शंख, चन्द्रमा 
      और चमेली के पुष्प के सौंदर्य का मिश्रण हो तथा-  

636. ॐ गन्धर्वसेवितायै नमः- जो दु:खों से ग्रस्त हा-हा’, हू-हू नाम के
दो गन्धर्वों द्वारा पूजी जाती हैं और उनका सहारा बनती हैं ।
  
637. ॐ विश्वगर्भायै नमः- जिनके गर्भ में ये समस्त संसार समाया हुआ है,

उन्हें बारम्बार नमस्कार हो । 

638. ॐस्वर्णगर्भायै नमः- हे मां ! सु अर्थात भव्य, अर्णाअर्थात आपके स्वर्ण सी

कान्ति वाले गर्भ में समाय हुए हैं और इस तरह  बुरी शक्तियों से रक्षा,

और सिद्धि प्राप्त कराने वाले मंत्रो की उत्पत्ति आप के द्वारा ही हुई है ।

अत: हे कल्याणी । आपको बारम्बार नमस्कार हो ।   
639. ॐ अवरदायै नमः- आप पापी राक्षसों का संहार करके शुभ

कर्म करने वाले भक्तों की रक्षा करती हो,     

640. वागधीश्वर्यै नमः- आप वाणी की धनी हो,

641. ध्यान गम्यायै नमः- आप वह परा शक्ति हो जिन्हें गह्न ध्यान व

साधना के द्वारा पाया जा सकता है,तथा-

642. अपरिच्छेद्यायै नमः- -आप अनन्त, सर्वत्र विद्यमान होते हुए भी अबोधगम्य

हो, आपको बारम्बार नमस्कार हो ।

643. ॐ ज्ञानदायै नमः- आप ग्यान प्रदान करने वाली हो अर्थात बिना आपकी

कृपा के बिना आपके "अपरिहार्यरूप" को कोईनहीं जान सकता ।

644. ॐ ज्ञानविग्रहायै नमः- आपकी मूरत स्वयं अपनी वास्तविकता को अपने

भीतर प्रकट करती है और उसकी चेतना का अनुभव करा देती है, तथा-

645. ॐ सर्ववेदान्तसंवेद्यायै नमः- आप वेदान्त के सर्वोच्च ज्ञान के माध्यम से

जानी जाती हो, आपको बारम्बार नमस्कार हो ।

646. ॐ सत्यानन्दस्वरूपिण्यै नमः- आप एकमात्र और एकमात्र विभिन्न वस्तुओं के रूप

में पूरे ब्रह्मांड में मौजूद हैं ब्रह्म को जानने वाले इसे सत्य कहते हैं और जो इस

सत्य का अनुभव करता है उसे परम  आनंद की अनुभूति होती है ।

647. ॐ लोपामुद्रार्चितायै नमः- आप आपके पंचदशी मंत्र का जाप करने वाली अगस्त्य ऋषि जी की पत्नी ‘ लोपामुद्रा की आराध्या हो,

648. ॐ लीलाक्लृप्त ब्रह्माण्ड मण्डलायै नमः – आप के द्वारा ब्रहाण्ड की रचना एक

लीला है,

649.ॐ अदृश्यायै नमः- -आप के दर्शन केवल दिव्य नेत्रों से ही किए जा सकते हैं,

650. ॐ दृश्यरहितायै नमः- आप न केवल दृश्यता बल्कि कल्पना से

परे हो, आपको बारम्बार नमस्कार हो ।

651. विज्ञात्र्यै नमः- आप "निरपेक्ष विग्यात्री अर्थात सब कुछ जानने वाली हो ।

आपके समान दूसरा कोई नहीं है ,

652. ॐ वेद्यवर्जितायै नमः आप सर्वज्ञ हो। आप के लिए और जानने

के लिए कुछ भी शेष नहीं है,

653.ॐ योगिन्यै नमः- आप योग के माध्यम से ब्रह्मांडीय ऊर्जा को

नियंत्रित करती है और अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाली हो,तथा-

654. ॐ योगदायै नमः- आप ही योग का ग्यान देने वाली हो, आपको बारम्बार नमस्कार हो ।

655. ॐ योग्यायै नमः- आप को योग साधना के द्वारा मन को एकाग्र कर के 

पाया जा सकता है,

656.ॐ योगानन्दायै नमः- - आप योग के आनन्द में आनन्दित रहती हो, तथा  

657.ॐ युगन्धरायै नमः- सतयुग, त्रेता युग,द्वापर युग और कलियुग-

इन चारों युगों के क्रम को आप ही नियंत्रित करती हो । आपको बार-बार नमस्कार हो । 

658. इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति स्वरूपिण्यै नमः - आप इच्छा, ज्ञान और क्रिया की

शक्तियों की स्वामिनी हो, तथा-

659. ॐ सर्वाधारायै नमः- ये पूरा संसार आप की शक्तियों पर ही आश्रित है,आपको

बार-बार नमस्कार हो ।  

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