ललिता सहस्त्रनाम हिन्दी व्याख्या - 60 - 99

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  ----------------------------------------------निरुपमा गर्ग


60. ॐ कदम्ब वन वासिन्यै नमः- जो कदम्ब वन में निवास करती हैंं,

61. ॐ सुधासागर मध्यस्थायै नमः- जो अमृत सागर के मध्य में निवास करती है, 

62. ॐ कामाक्ष्यै नमःजो अपनी दृष्टि से सब की इच्छाएं पूरी करती हैं, तथा-

63. ॐ काम दायिन्यै नमः– जो मनोवाण्छित मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

 64. ॐ देवर्षि गण सङ्घात स्तूय मानात्म वैभायै नमः– जिनके गुणों की प्रशंसा सब देवता व ऋषिगण करते हैं, 

 65. ॐ भण्डासुर वधो द्युक्त शक्तिसेना समन्वितायै नमः - जो बंदसुरा जैसे असुरों का  संहार करने पर आमादा शक्तियों की सेना से संपन्न है, 

66. ॐ सम्पत्करी समारूढ सिन्धुर व्रज सेवितायै नमः- जिनके साथ हाथियों का एक झुंड है, जिसका कुशल नेतृत्व सम्पतकर कर रहे हैं, तथा-

67. ॐ अश्वा रूढा+धिष्ठिताश्व कोटिकोटि भिरा+वृतायै नमः- जो कई लाख घोड़ों की घुड़सवार सेना से घिरी हुई है जो शक्ति अश्वारुढ़ के आदेश के अधीन हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

68. ॐ चक्रराज रथारूढ सर्वायुध परिष्कृतायै नमः- जो अपने रथ चक्रराज में सवार हैं और अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हैं, 

 69. ॐ गेयचक्र रथारूढ मन्त्रिणी परिसेवितायै नमः- जो मंत्रिनी नामक शक्ति द्वारा सेवित है और जो  गेयाचक्र नामक रथ पर सवार हैं, 

70. ॐ किरि चक्र रथारूढ दण्डनाथ पुरस्कृतायै नमः- जो दण्डनाथ नामक शक्ति द्वारा अनुरक्षित है,और किरीचक्र रथ में  विराजमान हैं, तथा-

71. ॐ ज्वालामालिनि काक्षिप्त वह्नि प्राकार मध्यगायै नमः- जो देवी ज्वालामालिनि द्वारा निर्मित अग्नि के बीच में स्थित हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

72. ॐ भण्ड सैन्य वधोद्यु शक्ति विक्रम हर्षिता+यै नमःजो देवीभंडाससुर की सेना को नष्ट करने पर आमादा अपनी शक्तियों की वीरता पर प्रसन्न होती हैं, 

73. ॐ नित्या पराक्रमाटोप निरीक्षण समुत्सुकायै नमः- और भंडासुर की सेना पर हमले में अपने नित्य देवताओं की आक्रामकता को देखकर प्रसन्न होती हैं,

74. ॐ भण्ड पुत्रवधो द्युक्त बाला विक्रम नन्दितायै नमः- जो भंड के बेटे को मारने का इरादा रखने वाली अपनी वीर पराक्रमी  बेटी बाला को देखकर बहुत खुश होती हैं,तथा-

75. ॐ मन्त्रिण्यम्बा विरचित विषङ्गवध तोषितायै नमः- (विशुक्रवधतोषितायै)- जो युद्ध में

 मंत्रीनी शक्ति द्वारा विषंगा राक्षस के विनाश पर संतुष्ट होती है, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

76. ॐ विशुक्र प्राणहरण वाराहीवीर्य नन्दितायै नमः- (विषङ्गप्राणहरण)- जो  विशुक्र के प्राण हरने  वाले भगवान विष्नु के अवतार वराह के पराक्रम से प्रसन्न हैं, तथा

77. ॐ कामेश्वर मुखा लोक कल्पित श्रीगणेश्वरायै नमः- जो कामेश्वर के मुख पर दृष्टि डालने से गणेश को जन्म देती हैं, उन गणपति महाराज की माता को सादर प्रणाम ।

78. ॐ महागणेश निर्भिन्न विघ्न यन्त्र प्रहर्षितायै नमः-जो परोपकार की भावना रखने के  कारण सभी बाधाओं को तोड़ देने वाले  पुत्र गणेश पर प्रसन्न होती हैं, तथा-

79. ॐ भण्डासुरेन्द्र निर्मुक्त शस्त्र प्रत्यस्त्र वर्षिण्यै नमः-जो भंडासुर द्वारा अपने विरुद्ध चलाए गए अस्त्रों की वर्षा का मुकाबला अपने शस्त्रों से करती हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

80. ॐ कराङ्गुलि नखोत्पन्ना  नारायण दशाकृत्यै नमः- जिन्होंने अपनी अंगुलियों के नाखूनों से दस नारायणों को जन्म दिया, 

81. ॐ महापाशुपतास्त्राग्नि निर्दग्धासुर सैनिकायै नमः- जिन्होंने-अपने पाशुपत शस्त्र की आग से राक्षसों की सेना को  जलाकर मार डाला, 

82. ॐ कामेश्वरास्त्र निर्दग्ध सभाण्डासुर शून्यकायै नमः-जिन्होंने भण्डासुर और उसकी राजधानी शुन्यक को  जलाकर कामेश्वरास्त्र से नष्ट कर दिया, तथा- 

83. ॐ ब्रह्मोपेन्द्र महेन्द्रादि देव संस्तुत वैभवायै नमः- जिनकी अनेक शक्तियों का बखान ब्रह्मा, विष्णु, शिव द्वारा किया जाता है, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

84. ॐ हर नेत्राग्नि सन्दग्ध काम सञ्जीवनौषध्यै नमः- जो शिव की तीसरी आंख की  अग्नि से जलकर राख होने वाले कामदेव (भगवान) के लिए जीवन देने वाली औषधि बन गईं थीं,

85. ॐ श्रीमद्वाग्भव कूटैक स्वरूप मुखपङ्कजायै नमः- जिनका मुख कमल के समान शुभ वाग्भावकुट पंचदशी मंत्र के अक्षरों का) (एक समूह) है, 

86. ॐ कण्ठाधः कटि पर्यन्त मध्य कूटस्व रूपिण्यै नमः- जो गर्दन से कमर तक भगवान शिव के समान स्वरूप की हैं, तथा-

87. ॐ शक्ति कूटैकतापन्न कट्यधो भागधारिण्यै नमः- जिनके कमर के नीचे का  रूप पंच-दशाक्षरी मंत्र के अंतिम भाग (शक्ति-कूट) के समान है, उन्हें नमस्कार, बार-बार 

  नमस्कार हो ।

88. ॐ मूल मन्त्रात्मिकायै नमः- जो पंचदश+अक्षरी मंत्र का अवतार हैं, 

89. ॐ मूलकूट त्रय कलेवरायै नमः- जिनका (सूक्ष्म) शरीर पंचादश+अक्षरी मंत्र

के तीन भागों से बना है, 

90. ॐ कुलामृतै कर सिकायै नमः- जो हज़ार पंखुडियों वाले कमल से बहते हुए 

अमृत को  पीने में आनन्द प्राप्त करती हैं, 

91. ॐ कुल सङ्केत पालिन्यै नमः- जो कुला के रूप में  अनुपयुक्त लोगों में 

    योग मार्ग को गिरने से रक्षा करती है, तथा-

92. ॐ कुलाङ्गनायै नमः- जो सुसंस्कृत परिवार से पैदा हुई हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार                                  नमस्कार हो ।

93. ॐ कुलान्त स्थायै नमः- जो कुल विद्या में निवास करती हैं, 

94. ॐ कौलिन्यै नमः- जो कुल से संबंधित हैं, 

95. ॐ कुल योगिन्यै नमः- जो कुल योगिनी देवी हैं, 

96. ॐ अकुलायै नमः—जो किसी भी ग्यान से परे हैं, 

97. ॐ समयान्त स्थायै नमः- जो 'समय' के अंदर निवास करती है और शिव और शक्ति की मानसिक पूजा में निवास करती हैं, 

98. ॐ समयाचार तत्परायै नमः- जो उपासना के साम्य रूप से जुड़ी हुई है, तथा-

99. ॐ मूला+धारै कनिल+यायै नमः— जिसका मुख्य निवास स्थान मूलाधार है, उन्हें                            नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

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