190 एक पल

          


                         [ 1 ]

   पल एक 'अक्षर'  , दो  हैं   व्यंजन

     स्वर  इसमें  एक  नहीं

    किताब  जीवन की  लिखता  कैसे

   किसी  को  होता  बोध नहीं  ।

         [2 ]

क्या  लिख  रहा है   ?

क्या  लिखने वाला  है  ?

किसी को  होता  पता  नहीं

कब  क्या  घटित कर दे

किसी  को  होता  ज्ञात  नहीं 

         [ 3 ]

अगले  पल  यह  होगा

ऐसा  कुछ  करेंगे  हम

"पल"  कर  जाता  है काम कब अपना  

किसी  को  होती  खबर  नहीं

        [ 4 ] 

सुख-दु:ख  हो  या  लाभ-हानि 

सब "इक पल"  के  हाथ  में  है

बनती  बात  कब  बिगड  जाए

या  बिगडी  बात कब  बन  जाए

किसी  को  यह  ज्ञात  नहीं

        [ 5 ]

"हम यह  करेंगे", वो   करेंगे 

रह जाता  सोचता, है  इंसान

 "पल" ने करना अपनी  मर्ज़ी  का

कुछ  कर  सकता इंसान  नहीं 

      [ 6]

व्यर्थ  हृदय  धडकता  है 

होनी-अनहोनी सोचता है

मारे  डर  के कैद  अपने को

शंकाओं  में  कर  लेता  है

"पल" तेज़ी  से  आकर  कब 

आंख  धुंधली  कर  जाता  है

 देखते  हुए भी खुली  आंख  से   

देख    कोई  पाता  नहीं  

      [  7 ] 

पलभर  की एक  गलती  मुसीबत में  झोंक  देती  है

एक  ज़रा सी  असावधानी मेहनत  पर पानी  फेर देती है

पलभर की  कही  गई  वाणी  गलतफहमियां  उत्पन्न  करती  हैं

निर्दोष  होते  हुए  भी  दोषों  की  लिस्ट पलक   झपकते  बनाती  है

पल की अच्छाई,  पल  की  बुराई  किस्मत को  उल्टाती  है

कब बनी की  बिगडी   और  बिगडी  की  बनी  बनती  है

कोई  समझ  पाता  नहीं

        [8 ]

    पल एक 'अक्षर'  , दो  हैं   व्यंजन

     स्वर  इसमें  एक  नहीं

    किताब  जीवन की  कैसी लिख  दे  ?

   किसी  को  होता   ज्ञात  नहीं  ।

                                                              लेखिका-निरुपमा  गर्ग

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