180 हे अमर जवान ज्योति ! अमर रहो ! तुम अमर रहो ।
[ 1 ]
हे अमर जवान ज्योति ! शोला बन तुम
वीरों के दिल में धधकती हो
गोलों के तेज़ धमाकों में
बिजली सी बन चमकती हो
जलते अंगारों में कूद कहीं
लाशों के ढेर पर गिरती हो
फिर सन्नाटे के अंधियारे में
खामोशी से जलती हो
न बुझने पाए धरती का दीपक
सुपुर्द अग्नि हो जाती हो
[2 ]
मौत बुलाती है जिसको
तुम वो साधारण लाश नहीं
थाम ले जिसको यम के दूत
तुम वो साधारण श्वास नहीं
[ 3 ]
क्या ज्ञात है तुम को देशवासियों ?
ज्योत यह कैसे जलती है ?
कितना घी , और कितना तेल
व किस बाती से जलती है ?
[ 4 ]
लो, आज बताते हैं, तुमको हम
" सीना" इसका दीपक और
"लहू" , तेल की बोतल है
जब दुश्मन की गोली माचिस बनती
तब "बाती " इसमें जलती है ।
[ 5 ]
लिपट तिरंगे में आती है जब
पार्थिव देह वीर जवां की
'मां भारती' के मन्दिर में तब
'अमर ज्योत'
है जलती उसकी
[ 6 ]
तीज़-त्यौहर, ढोल धमाका
जश्न में हम जब डूबते हैं
बार्डर पर अपने वीर चिराग
धूं-धूं गोली से भुनते हैं
[7]
चिंगारियां सूर्ख दीपक से उठ कर
बल खाती- इतराती हैं
अपने घर अंधेरा कर
घर-घर प्रकाश फैलाती हैं ।
[ 8 ]
ईश्वर बनता साक्षी इनका
हर साल नीर बहाता है
हल्की-हल्की बूंदों से अपना
गहन शोक प्रगटाता है
[ 9 ]
हे अमर जवान ज्योति, तुम
अमर रहो ! तुम अमर रहो ।
135 करोड दुआएं हैं तुम को
अजर रहो ! तुम अजर रहो ॥
लेखिका-निरुपमा गर्ग
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