148. "आज़ादी का दिन है आया " [ कविता ] https://www.youtube.com/watch?v=ut43-t7pmmw
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"आज़ादी का दिन है आया " [ कविता ]
[1]
सुभाष ! बाल ! पाल ! उठो
देश के भावी लाल उठो
जो रंग चढ़ा था सन् सैंतालीस में
वो आज रंग फिर चढ़ आया
देखो ! आज़ादी का दिन है आया !
[2]
सूर्य नारायण की सूर्ख लालिमा
पहना रही माँ धरती को
लाल रंग की साड़ी
हरे, केसरिया, श्वेत रंग से
सजा रही बड़े प्यार से
उसे प्रकृति रानी
[3 ]
तीन रंग की चुनरी उसकी
हवा सर-सर लहरा रही
रंग बिरंगे पुष्प बरसा कर
जीत का जश्न मना रही
[4]
खुशियाँ मनाने आसमान से
आ पहुंची वर्षा की बूंदे
और तुम अभी तक सोए पड़े हो \
बिस्तर पर आँखें मूँदे
[5]
जिनकी वजह से तुम इतनीगहरी नींद में हैं सो रहे
कमर को कस कर आज भी वे
ब्रह्म-मूर्त से जगे हुए
[6]
ब्रह्म-मूर्त से जगे हुए
[6]
देखो तनिक उठ कर तुम
किनकी मेहनत रंग लाई है
कितनों ने जान गंवाई तब
तुमने यह छुट्टी मनाई है
[7]
जानो तुम यह राष्ट्र-पर्व है ,
किसी और पर्व से कम नहीं
ये है तो हम हैं बच्चों !
इसके बिना हम कुछ नहीं
[8]
देश तो सर का ताज़ है बच्चों !
सर की छत्र-छाया है बच्चों !
देश है तो हम सुरक्षित , इसकी छाया में हम अभिरक्षित
हम निरापद, हम हैं विकसित , हम अधिकृत, हम हैं शिक्षित
हम अभिनन्दित, हम पुरस्कृत,
लाख अवगुण हों हम में फिर भी
अपने देश में हम हैं स्वीकृत
[9]
देश प्राण है , देश श्वास है
देश कर्म है, देश धर्म है
इतिहास खोल कर देखो तनिक तुम
चैनो-अमन का यही मर्म है
[7]
जानो तुम यह राष्ट्र-पर्व है ,
किसी और पर्व से कम नहीं
ये है तो हम हैं बच्चों !
इसके बिना हम कुछ नहीं
[8]
देश तो सर का ताज़ है बच्चों !
सर की छत्र-छाया है बच्चों !
देश है तो हम सुरक्षित , इसकी छाया में हम अभिरक्षित
हम निरापद, हम हैं विकसित , हम अधिकृत, हम हैं शिक्षित
हम अभिनन्दित, हम पुरस्कृत,
लाख अवगुण हों हम में फिर भी
अपने देश में हम हैं स्वीकृत
[9]
देश प्राण है , देश श्वास है
देश कर्म है, देश धर्म है
इतिहास खोल कर देखो तनिक तुम
चैनो-अमन का यही मर्म है
[10]
उठो उड़ाओ छत पर जा कर
इसकी शान के गुब्बारे
झूमो, नाचो, गाओ ऐसे
आज़ादी के जैसे मतवारे
दुनिया भी तो देखे -हो कितने
देश के अपने तुम दीवाने ii
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जय भारत ! तुम दीर्घायु हो i कोई तुम्हारा बाल भी बांका न कर सके !
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शान के गुब्बारे उडाना=देश को उन्नति की ओर अग्रसर करना
लेखिका-निरुपमा गर्ग
See more on-222,251
Very nice poem
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