117 पेंडुलम [ एक लघु कथा ]

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यह उन दिनों की बात है जब गर्मियों की छुट्टियों में हम अक्सर ननिहाल जाया करते थे i नाना जी के घर बहुत पुराना ,सुंदर सा घड़ियाल दीवार पर टिक -टिक  करता रहता था जो अक्सर  मेरा ध्यान  अपनी  ओर आकर्षित करता था  i  इसकी सुन्दरता  तो मुझे आकर्षित करती ही थी , इसके द्वारा इंगित किया हुआ समय मुझे गहरी सोच की दुनिया में ले जाता था   - अरे  टिक-टिक करता हुआ  पेंडुलम  अभी तो 2 बजा रहा था ,देखते ही देखते 4 बज गए i बड़ी जल्दी समय को घुमाता है यह  i यह  समय ठहर ही  नहीं रहा है  i देखो तो  कितनी जल्दी-जल्दी बदल रहा है i
             ओह i हम भी तो ऐसे ही हैं i अभी तो खाना खाने को मन था अभी चाट खाने को मन हो आया i  थोड़ी देर पहले बाज़ार जाने को मन था ,अब नहीं है i  हमारा दिल और दिमाग़,  हमारे वचन और हमारे इरादे, "मैंने पेंडुलम की ओर देखा" अरे हाँ, ऐसे ही तो हैं  i कभी टिक कर  नहीं रहते  i  पेंडुलम की तरह  इधर से इधर हिलोरें लेते रहते  हैं i कभी दाईं ओर, कभी बाईं ओर i मित्र, सम्बन्धी यहाँ तक कि अपने घर व समाज के सभी वर्ग ऐसे ही दिखते हैं i
                                          

 इस दुनिया में   रात ही रात में विशवास बदल जाते हैं, और बात ही बात में अलफ़ाज़ बदल जाते हैं ii गिरगिट तो भगवान की रचना है , ये घड़ी की टिक-टिक के साथ सब  इंसान  भी बदल जाते है ii
               
बच्चों को देखो जो अपने माता-पिता से इतना प्यार करते थे , वे बुढ़ापे में उन्हें  सड़क पर छोड़ देते हैं i उनकी जमीन,ज़ायदाद ले कर उन्हें नि:सहाय कर देते हैं i  माता कैकई जो श्री राम से भरत से भी अधिक स्नेह करती थी ,रातों-रात बदल गई i उसने कैसे  राजा दशरथ से उनके लिए वनवास मांग लिया  i प्रजा को देखो जो उनके वनवास जाने पर  दुखी थी ,उसी ने वापिस आने पर सिया पर ऊँगली उठा कर उन्हें चैन से न रहने दिया i सदियों से यही हो रहा है i वही राजा जो प्रजा के दुःख दूर करने का वायदा करता है ,समय बीत जाने पर भूल जाता है और वह प्रजा जो नेताओं को भ्रष्टाचारी ,चरित्रहीन, व दुराचारी कह कर कोसती है अगला चुनाव आते ही उनको जिता देती है i और  वही पार्टियाँ जो  विपक्ष को भ्रष्टाचारी कहती है उन्हें अपनी पार्टी में मिला लेती है i  वोटर और राजा दोनों ही भूल   जाते हैं  कि छत कहाँ चाहिए, इमारत कौन सी बननी चाहिए, सहायता-राशि कहां देनी  चाहिए  तथा वोट के सिक्के किस गोलक में डालने चाहिएं ताकि उनका जीवन सुरक्षित रह सके i हाँ, पेंडुलम ही तो हैं हम सब i   सब आस-पास 1-2-3 नम्बर से रहते हैं और पेंडुलम घुमा रहा  है और  सब  घूम रहे  हैं i थम गया तो थम जाएंगे, चल रहा तो चलते रहेंगे i वाह रे पेंडुलम ! कमाल है ! कभी ध्यान ही नहीं गया कि दीवार पर तुम नहीं ,समाज का आईना सज रहा है i                      By: Nirupma Garg

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