115 राष्ट्रीय एकता [ कविता ]
अलग-अलग हमारी भाषा, अलग है वेशभूषा,
रीतियाँ अलग, जाति अलग, धर्म अलग
पर कुछ तो है,जो है एक समान
बोलो क्या है उसका नाम ?
' एकता' है नाम इसका
धरा पर उपजती एक समान
विचार भले ही विभिन्न हमारे
हाथ में इसके हर दिल की कमान
अलग पहनावा, अलग है खाना
अलग तरीका ,अलग त्यौहार
शुभकामनाएँ देते दिखते
आनन्द से करते लोग विहार
मिल जाते हैं हर धर्म के बंधू
गुरुद्वारों, मन्दिरों,मजारों में
विभिन्न जनता, विभिन्न क्षमता,
पर कुछ तो है,जो है एक समान
बोलो क्या है उसका नाम ?
' एकता' है नाम इसका
धरा पर उपजती एक समान
विचार भले ही विभिन्न हमारे
हाथ में इसके हर दिल की कमान
अलग तरीका ,अलग त्यौहार
शुभकामनाएँ देते दिखते
आनन्द से करते लोग विहार
मिल जाते हैं हर धर्म के बंधू
गुरुद्वारों, मन्दिरों,मजारों में
कोई कहते राम-राम
और कोई करते दुआ,सलाम
और कोई करते दुआ,सलाम
विभिन्न जनता, विभिन्न क्षमता,
एक है पर, देश की सभ्यता
झरता है यहां मेल का झरना
तनिक विपदा आ जाए
तनिक विपदा आ जाए
कोई न पूछता है धर्म अपना
सुख-दुःख के सांझी हो जाते हैं सब
जो बन पाता , करते हैं सब
मेरा देश लगता है ख़ुदा का घर
सुख-दुःख के सांझी हो जाते हैं सब
जो बन पाता , करते हैं सब
मेरा देश लगता है ख़ुदा का घर
जहाँ धर्म भूल, जाति भूल
एक हो जाते हैं सब
पुजारी,ग्रन्थी व धर्म गुरु
पहुँचा दो सब को संदेश जरा
अपने ईश्,गुरु ,अल्लाह के
पालो सब निर्देश जरा
पशु-पक्षी कीट-मकौड़े
सब में ईश्वर का वास है
कोरोना ने संदेश दिया है
सब को हुआ आभास है
भूल जाओ कौन हो तुम ,
कर्म करो अच्छे बस तुम
पुजारी,ग्रन्थी व धर्म गुरु
पहुँचा दो सब को संदेश जरा
अपने ईश्,गुरु ,अल्लाह के
पालो सब निर्देश जरा
पशु-पक्षी कीट-मकौड़े
सब में ईश्वर का वास है
कोरोना ने संदेश दिया है
सब को हुआ आभास है
भूल जाओ कौन हो तुम ,
कर्म करो अच्छे बस तुम
सत्कर्म ही खुश कर सकते हैं
अपने-अपने सर्वेश परम
अपने-अपने सर्वेश परम
समदृष्टि,सम-नज़र, सम व्यवहार
सब धर्मों का यही मर्म By: Nirupma Garg
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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चिद् दू:ख भाग भवेत् ii
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चिद् दू:ख भाग भवेत् ii
More- post no. 72 National Integration
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