] 103 मातृ -भाषा हिंदी -14 सितम्बर [कविता ]

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सुना  है  हिन्द  देश  की  हिंदी   भाषा  
ब्रह्मा  के  मुख  से  निकली  थी 
" ॐ"  की   ध्वनि सम्पूर्ण  नभ  में 
उज्ज्वल  प्रकाश  सी  चमकी  थी 
उजाला  करने    वाली  वह 
अंधियारे  की  तब्दीली  थी
वेद,पुराण,  महाकाव्य
इन  सबकी  यही  जननी  थी
पन्त , प्रसाद, निराला   की
वह  अद्भुत ,सुदर रचना  थी
तुलसीदास   की   कृति  थी  यह
महाभारत  की  रचना थी i
बाद  में इसका अंग्रजों  ने
अंग्रेज़ी  में  अनुवाद  किया
'पिता  श्री ' का  पापा  किया
'माता श्री '  को  'ममा' किया
कुछ  तो  अपना  रचा  नहीं
बस 'पिता'  का 'प'
'माता '  का ' म'
 चतुराई  से  चुरा  लिया
'अर्थशास्त्र '  'विज्ञान'  अनुसन्धान
यहाँ तक  कि  ' शून्य  गणित  का ' 
सब  हिन्दी  की  देन  थी 
चुरा  कर  उसको   अंग्रेज़ी ने 
कह  दिया -
ये तो  मेरी    'brain'  थी i 
 है अपनी  भाषा  इतनी  महान
इसकी हमें  पहचान  नहीं
तभी  तो  बोला कौआ  कोयल  से
तुम्हारी  कोई  औकात  नहीं
काँय-काँय  लगा  कर  कौआ
 गर्दन  ऊंची  रखता है
शराफत  में  मीठी आवाज़  का
शर्म  से  सर  झुकता  है
जिधर  भी  देखो ,उधर  ही कौआ
खिटपिट-  खिटपिट करता  है
रिजेक्ट  हो  कर   कोयल   का
 अपना सा  मुंह लटकता  है i
सच  ही  कहा  है  किसी ने-
"ये महानता,यह  शराफत
आज  की दुनिया में टिकती  नहीं
बर्बाद  करने  पर जब  अपने उतरे
फिर  सम्भाले-सम्भलती  नहीं"
कहते  हैं  हिंदी  अपनाओ
कितने  अपनाना  चाहते  हैं ?
मुख  में करते ' हिंन्दी-हिंन्दी '
कितने  रोज़गार देते हैं ?
विदेशों में   पढते  बच्चे
 देश  में  आकर
   खिटपिट-खिटपिट जब  करते हैं
हिन्दी का  राग  अलापने  वाले  यही  नेता 
शान  से  तब  मुस्कुराते  हैं
 उनसे  आगे न   निकले  कोई
हिन्दी-हिन्दी करते  हैं i
हिन्दी  से  प्यार   है  गर  
हिन्दी  का  सम्मान  करो
अंग्रेज़ी  में  जो  तंग   हैं  बच्चे  
उनका  न   अपमान    करो
हिन्दी  हमारी  सम्मानित  भाषा
स्वीकारने  में    अभिमान  करो
दिखावे  के   लिए  केवल  इसको
माँ  की   बोली  न  कहा  करो  i 

जय भारत i जय माता i जय  मातृभाषा i

By: Nirupma Garg

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