] 103 मातृ -भाषा हिंदी -14 सितम्बर [कविता ]
ब्रह्मा के मुख से निकली थी
" ॐ" की ध्वनि सम्पूर्ण नभ में
उज्ज्वल प्रकाश सी चमकी थी
उजाला करने वाली वह
अंधियारे की तब्दीली थी
वेद,पुराण, महाकाव्य
इन सबकी यही जननी थी
पन्त , प्रसाद, निराला की
वह अद्भुत ,सुदर रचना थी
तुलसीदास की कृति थी यह
महाभारत की रचना थी i
[2]
बाद में इसका अंग्रजों ने
अंग्रेज़ी में अनुवाद किया
'पिता श्री ' का पापा किया
'माता श्री ' को 'ममा' किया
कुछ तो अपना रचा नहीं
बस 'पिता' का 'प'
'माता ' का ' म'
चतुराई से चुरा लिया ||
[3]
'अर्थशास्त्र ' 'विज्ञान' अनुसन्धान
यहाँ तक कि ' शून्य गणित का '
सब हिन्दी की देन थी
चुरा अंग्रेज़ी ने
कह दिया -
ये तो मेरी 'brain' थी i
ये तो मेरी 'brain' थी i
है अपनी भाषा इतनी महान
इसकी हमें पहचान नहीं
तभी तो बोला कौआ कोयल से
तुम्हारी कोई औकात नहीं ||
[4]
काँय-काँय लगा कर कौआ
गर्दन ऊंची रखता है
गर्दन ऊंची रखता है
शराफत में मीठी आवाज़ का
शर्म से सर झुकता है
जिधर भी देखो ,उधर ही कौआ
खिटपिट- खिटपिट करता है
रिजेक्ट हो कर कोयल का
अपना सा मुंह लटकता है i
[5]
सच ही कहा है किसी ने-
"ये महानता,यह शराफत
आज की दुनिया में टिकती नहीं
बर्बाद करने पर जब अपने उतरे
फिर सम्भाले-सम्भलती नहीं"
कहते हैं हिंदी अपनाओ
कितने अपनाना चाहते हैं ?
मुख में करते ' हिंन्दी-हिंन्दी '
कितने रोज़गार देते हैं ?
[6]
विदेशों में पढते बच्चे
देश में आकर
खिटपिट जब करते हैं
हिन्दी का राग अलापने वाले यही नेता
शान से तब मुस्कुराते हैं
उनसे आगे न निकले कोई
हिन्दी-हिन्दी करते हैं i
[7]
हिन्दी से प्यार है गर
हिन्दी का सम्मान करो
अंग्रेज़ी में जो तंग हैं बच्चे
उनका न अपमान करो
हिन्दी हमारी सम्मानित भाषा
स्वीकारने में अभिमान करो
दिखावे के लिए केवल इसको
माँ की बोली न कहा करो i
हिन्दी हमारी सम्मानित भाषा
स्वीकारने में अभिमान करो
दिखावे के लिए केवल इसको
माँ की बोली न कहा करो i
जय भारत i जय माता i जय मातृभाषा i
By: Nirupma Garg
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