84 ] क्या इंसान सचमुच दुखों से छुटकारा चाहता है ?
क्या इंसान दुखों से छुटकारा पाना चाहता है ?--------------
भजन-कथा
-एक बार नारद वैकुण्ठ जा पहुंचे ,प्रभु के आगे उदासी से बैठे -उदासी से बैठे
बोले प्रभु-हे प्यारे नारद , मन की व्यथा कहो तुम विस्तारद-तुम विस्तारद i
मज़े से बैठे हो-नारद यूँ बोले ,दुनिया में जा कर देखो दुखी कैसे डोल रहे
दुनिया के पालक तुम कहलाते ,सुध उनकी तुम क्यूँ न लेते-क्यूँ न लेते i
भगवन् बोले-दुखी मत हो नारद , देखो किसे है मुक्ति की चाहत
चाहेगा जो भी, दुःख से छुटकारा , मुक्ति मैं दूंगा उसे , ये मेरा वादा, ये मेरा वादा i
नारद उतरे साधू के वेश में ,सबसे पहले गए राजा के देश में
बोले राजन ! क्या चाहते हो ? नि:संकोच कहो क्या इच्छा रखते हो ,क्या इच्छा रखते हो i
राजा यूँ बोला-धन-धान्य है प्रभु ,प्रजा भी मेरे यहाँ सब ओर सुखी प्रभु
बस इक पुत्र की तमन्ना है, हे प्रभु ! दे सकते हो तो दे दीजिए प्रभु, दे दीजिए प्रभु i
'एवमस्तु' बोले ,चले आगे नारद,टकरा भिखारी बोले फिर ऋषि नारद
बोलो हे मानव !क्या चाहते हो ?,नि:संकोच कहो, जो इच्छा रखते हो
बोला भिखारी- पैसा है सब कुछ ,दे दो गरीब को जो इच्छा रखते हो कुछ
भिखारी की तो यही है तमन्ना, दो रोटी ही उसके लिए सब कुछ , उसके लिए सब कुछ i
इक-इक करके सबसे मिले नारद ,कहीं न मिली उनको मुक्ति की चाहत
बात वहीं की वहीं रह गई सब ,दुःख में सुखी रहना यहीं चाहते सब ,यहीं चाहते सब i
हंस कर बोले ,वैकुण्ठ नाथ तब
मिल कर आ गए सबके साथ तुम नारद, साथ तुम नारद i
कहो सबकी नारद-कुशल और मंगल
क्या संदेश है कहो विस्तारद
क्या संदेश है ,कहो विस्तारद i
शिकवा क्या मुझ से , कहो प्यारे नारद , कहो प्यारे नारद i
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