{80} माता की 108 स्तुतियां



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                                           तेरी रहमत मुझे  मिल जाए माँ, तो   मेरी तकदीर बन  जाए 
                                            तेरी सहमत हो  जाए माँ, तो  मेरी तहरीर संवर  जाए 
                                                        तेरी दया बरस जाए इस कदर माता 
                                                      कि  कयामत इसकी  मेरी अमानत बन जाए  ii

हे माँ  सुचियाँ जोताँ वाली माता तेरी सदा ही जय ---------------------------------------------------------
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ऊंचा  पर्वत,  ऊंची  पौड़ी, ऊंचा  है  दरबार
बच्चे, बूढ़े  सब  चढ़   जाते  , उसकी  महिमा  अपार
भक्तों  चले  चलो
बोल  के  मां  का  नाम ,  भक्तों  चढ़े-चढ़ो
बोलो-=

1,2,3,४.----------------
माँ के भवन के खम्बे चार i

5,6,7,8------------------
माँ तेरी भुजाएँ आठ i

9,10,11, 12-------------
चरण पखार   रहा  देखो   झरना

13,14,15,16--------------
गूँज रहा  उसका  जयकारा i

 17,18,19,20-----------------
 मां  मेरी   की   कोई   न    रीस i

21, 22,23, 24-------------------
मां   मेरी   शेरों   पे     शोभी   i

25,26,27, 28-------------------
असुरन्ह   की   सेना  थी   ढ।ई,

29,30,31,32------------------
 मा  मेरी  शक्तियों   की   शक्ति                                              

33,34,35,36--------------------
जोतां   उसकी   जलती  रहती  i

37,38,39,40-------------------------
  काल  को   वश   में करने   वाली    !

41,42,43,44 -----------------------
जय हो तेरी लाटां वाली i

45,46,47,48-------------------------
दाती   सब    कुछ  देने    वाली  i

47,48,49,50--------------------------
पूरी  करती  सबकी  आस  i
पूरी  करती  सबकी आस i
पूरी  करती  सबकी आस i
जरा  ज़ोर  से  बोलो,  जय  माता  की --------------------------
हिम्मत  करो,  चढ़े-चढ़ो-जय  माता  की  
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तेरे मन्दिर सा पावन मेरा मन हो जाए , तेरी भक्ति की उसमें जोत जल जाए 
रोशन वो जोत  मुझे इतना कर दे  कि  इबादत की तेरी  माँ, मुझे आदत हो जाए 
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इकावन< बावन< तरेपन< चौवन -------


था भक्त श्रीधर, इक मां का मनभावन   

पचपन< छप्पन< सत्तावन< अठावन -------
  दिया उसने भण्डारा-निमन्त्रण  

उनसठ< साठ, इक्सठ< बासठ  --------

आया उसमें भैरो ब्राह्मण   

त्रेंसठ< चौंसठ, पैंसठ, छियासठ -----------
भर गए थाल, थे भोग लुभावन

सतासठ< अठासठ< उन्हत्तर, सत्तर -------
समझ गया श्रीधर पर है

कन्या का  छत्त

 

इकहत्तर< बहत्तर< तिहत्तर< चौहत्तर ------
 कन्या भागी तभी शेर पे चढ कर   

पचहत्तर< छियत्तर< सतत्तर, अठत्तर ---------
भागा पीछे भैरो ब्राह्मण

उनासी< अ‍ॅस्सी, इकासी< ब्यासी   ----------
मां ने उठाया भाला‌-बरछी

तिरासी< चौरासी< पचासी< छयासी ------

काटा सीस और जून चौरासी

बना लिया उसे पर्वत वासी

सतासी< अठासी< उनान्वें, नब्बे ------

 कितनी हो तुम करुणामयी अ‍म्बे !

इकान्वें, बान्वें< तिरान्वें, चौरान्वें -----
बार- बार   हम  शीश   झुकावें  i

पचान्वें, छयान्वें, सतान्वें, अठान्वें ----

आओ तारा की कथा सुनावें  

निन्यावें, सौ, एक सौ एक --------
रुक्मण के घर कपटी एक i

एक सौ दो, एक सौ तीन ------
माँस के टुकड़े लाया बीन i

एक सौ चार, एक सौ पांच ------

दिए तारा के भोग में बाँध  

एक सौ छ्ह, एक सौ सात ------
 राजा हरिशचन्द्र आया जब पास


एक सौ सात, एक सौ आठ ------
मेवा, मिश्री बन गया माँस i

  ज़रा   ज़ोर  से   बोलो  -जय  माता  की 

  प्रेम से बोलो –जय माता की

  मिल कर बोलो-जय माता की  

जय हो---------------------------------------

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                                                                                                  By: Nirupma Garg
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माता का भोग जानें = Post No.-216

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