{51} जय किसान, जय अन्नदाता [ कविता ]
एक बार किसान ,पुजारी
केशव के दरबार मिले
बोले-बोलो हे बांके बिहारी
किस्में भक्ति के गुण दिखे
पुजारी बोला- अवश्य मै हूँ वो केशव
दिन-रात तुम्हें मैं ध्याता हूँ
बिन-बिन के फूल चरणन में
भेंट तुम्हारी चढ।ता हूँ
[2 ]
बोले मधुसुदन मधुर मुस्कान लिए
नि:सन्देेेह तुम भक्त मेेेरे
बोले मधुसुदन मधुर मुस्कान लिए
नि:सन्देेेह तुम भक्त मेेेरे
दिन-रात मुझे तुम ध्याते हो
पर मेरा किसान है बोता
जो फूल मुझे चढ।ते हो
माटी में वो लिपट रहा
पसीने से लिसड़ रहा
विपदा में सिमट रहा
न कोई देशभक्त, न
पुन्य--दान आसक्त
पसीने से लिसड़ रहा
विपदा में सिमट रहा
न कोई देशभक्त, न
पुन्य--दान आसक्त
धरती का मानस पुत्र है वो
अन्न का दाता किसान है वो
अन्न का दाता किसान है वो
अत:सबसे प्रिय मुझ को है वो
[3]
सबसे ज़्यादा बुरा वक्त
पृथ्वी पर जीता है सम्भवत: वो
सबसे ज़्यादा बुरा वक्त
पृथ्वी पर जीता है सम्भवत: वो
हे पुजारी ! भक्ति के गुण
उसी में दिखते मुझ को तो
[4]
खेत लहलहाते उसके जब
वैसाखी त्यौहार मनाता है वो
कर्ज़ के गम को पी कर भी
खुशियों को ज़ाहिर करता वो
खुद अन्नदाता होकर भी
अन्न की भीख मांगता वो
पर औरों का पेट भरने
मुझ से गुहार लगाता है वो
जो भोग मैं नित्य खाता हूँ
उसको ला कर देता है वो
तुम्ही बताओ -ऐ पुजारी
मुझ को प्यारा क्यूँ न हो वो
पर औरों का पेट भरने
मुझ से गुहार लगाता है वो
जो भोग मैं नित्य खाता हूँ
उसको ला कर देता है वो
तुम्ही बताओ -ऐ पुजारी
मुझ को प्यारा क्यूँ न हो वो
[5]
तपिश को सहती माँ के आँचल में
बेबस हुआ सुलग रहा है वो ii
जान रहे हैं , देख रहे हैं
क्या होगा गर रहे न वो
"पेस्टिसाइड" से लोग मरेंगे
बंद कर दे गर पसीना बहाना वो ii
[6]
मेरे तो भंडार भरे हैं
पैसे से मुझे क्या लेना-देना ?
गरीब किसान को मिल जाए तो
करोड़ों दुआएं तुम पा लेना ii
कभी गर्मियों की छुट्टियों में
खेत की सैर पर जा आना
" साथ तुम्हारे खड़े हैं सब ,"
हौंसला उसे तुम दे आना ii
हौंसला उसे तुम दे आना ii
[7]
इंतज़ार करो हर बात का तुम,
ज़िन्दगी को यह गंवारा नहीं
वृथा है वो मानव जीवन
जो दुःख किसी का बांटा नहीं ii
" जय किसान,जय अन्न-दाता ii"
By: Nirupma Garg
By: Nirupma Garg
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