{54 } महाराणा प्रताप जन्म दिवस -9 मई, 1540 [ कविता ]
वीर,अतिवीर, शूरवीर, बहती नदिया की धारा था
तेज़ हवा का झोंका वह, लाल सूर्ख सा सूरज़ था iभारत माँ का लाल लहू, लाल तिलक मस्तक का था
मेवाड़ की धरती पर जन्मा जो ,
कोई और नहीं, कोई और नहीं
उदय-पुत्र वो परम प्रतापी
कुम्भलगढ़ का राणा था ii
72 किलो का कवच पहन कर, 80 किलो का भाला ले कर
वो चेतक पर जाता था
रेंगता रहता दुश्मन धरती पर, वो हवा से बातें करता था i
राजवंश में पला बड़ा, घास की रोटी खाता था
एक अकेला राजपूत-राणा दुश्मन के हाथ न आता था
यूँ तो जीते थे उसने अनेक किले
चित्तोड़ था बस रह गया
चित्तोड़ नही तो ,चैन नहीं
तब तक महलों का पलंग नहीं
" पुआल पर सो जाऊँगा
पत्ते पर खाना खाऊँगा "
योद्धाओं में वह अर्जुन जैसा
प्रतिज्ञा में भीष्म-पितामह था
सन् 1576 ईस्वीं मे जब हल्दी घाटी युद्ध हुआ
लड़ते-लड़ते अकबर को तभी ऐसा अहसास हुआ
न हुआ उसके जैसा कोई कभी
न होगा भविष्य में और कोई
उसे जीतना न मुमकिन
है संधि में ही मेरी भलाई
85,००० की सेना थी उसकी,
राणा की थी केवल 20 ,०००
छक्के छूटे जब अकबर के
तो बोल रहा था बार- बार
"आधे भारत का राज़ करो तुम"
झुक जाओ वीर बस एक बार"
प्रताप को अपनी ओर करने हेतु
6 बार अकबर ने प्रयास किया
हर सांस पर वतन लिखने वाले ने
हर बार उसे ठुकरा दिया
यूँ तो था मुगलों का शासक अपने युग का "अकबर महान"
प्रताप के आगे डर गया इतना कि खौफ़ में अटक गई उसकी जान
दिल्ली से राजधानी ले कर लाहौर की ओर तब भाग गया
पीछे मुड़ कर तब तक न देखा, जब तक प्रताप इस दुनिया से
अलविदा न कह गया
अनेक राजा लालच में आकर
दुश्मन से जा मिल जाते थे
"प्रताप को वश में करना नामुमकिन "
,सब मुगल यह जानते थे
इसी वतन-परस्ती के तो
दुश्मन हो कर भी कायल थे ii
दिलों में चाहे कुछ भी हो
,पर तारीफ के तार तो बजते थे
ज़िद्द थी युद्ध करने की [ वरना ]
प्रताप को खोना कहां चाहते थे ii
" सूर्य की सूर्ख किरण क्या कभी धूमिल पड़ सकती है ?"
हवा की तेज़ थपेड़ों से क्या चट्टान भी चोटिल हो सकती है ?
वीरो की धरती पर रहने वालों
क्या एवरेस्ट की चोटी झुक सकती है ?
ऐसा ही था प्रताप का रुतबा,
सोया तो सन्नाटा छाया
रो- रो कर दुश्मन अकबर बोला
"जुदा हुआ जो आज फ़रिश्ता "
वह कोई और नहीं , कोई और नहीं
वह तो था मेरे दिल का राणा ii
मरा करते नहीं, मर कर भी जिनका नाम हो ज़िन्दा
खुदा आंसू बहाता है, मौत हो जाती है शर्मिंदा
फूट-फूट कर दुश्मन भी मौत पर उनकी रोते हैं
भारतमाँ के वीर पुत्र जब दुनिया से अलविदा कहते हैं ii
आओ ऐसे वीर को आज
सम्मान के साथ हम याद करें
तेज़ लौ के उस दीपक को,
और तेज़ रौशन करें
सुंदर सा इक थाल सजा कर
सुगन्धित पुष्प उसमें भर लें
अपने भारत के इस वीर पुत्र को
श्रद्धा-सुमन अर्पित कर दें
जय मेवाड़ ! जय भारत के वीर पुत्र ! तुम सदा-सदा के लिए अमर रहो ii
By: Nirupma Garg
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