{45} सृष्टि- तारक महावीर स्वामी { लघु कविता }
चैत्र शुक्ल दिन त्रयोदशी , महावीर जयंती आती है
है जन्म-तिथि महावीर की, जन्म कल्याणक कहलाती है i
हे महावीर वीर,अतिवीर, श्रमण , सन्मति -
कईं नामों से,
तुम जाने जाते हो
तुम जाने जाते हो
" कैवल्य ज्ञान " के ज्ञाता तुम
जीने की राह दिखाते हो ii
चींटी से लेकर मानव तक
एक ही आत्मा
एक ही आत्मा
सृष्टि में आपने देखी है i
"अपने सा हो व्यवहार दूसरो से "
यह शिक्षा आपकी बताती है ii
अस्तेय,अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य- ये तीन अणुव्रत हमें
लोभ और मोह से बचाते हैं
लोभ और मोह से बचाते हैं
सत्य, अहिंसा-ये दो अणुव्रत
सदाचार सिखलाते हैं ii
इन्द्रियों पर विजयी होकर
आपने जो उदाहरण पेश किया
सदाचार सिखलाते हैं ii
इन्द्रियों पर विजयी होकर
आपने जो उदाहरण पेश किया
" जिन " के रूप में इस सृष्टि ने
सर्वसम्मति से स्वीकार किया ii
सर्वसम्मति से स्वीकार किया ii
जात-पात का भेद न हो
समाज से आपने विरोध किया
"जीयो और जीने दो "
सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत दिया ii
आज हिंसा और लूट-पाट से
जब अपना देश है घिरा हुआ
"अहिंसा परमो धर्मों "
जाने कहाँ है लुप्त हुआ i
"अहिंसा परमो धर्मों "
जाने कहाँ है लुप्त हुआ i
आपकी अनुपस्तिथि में हे स्वामी !
समस्त मानव है सुप्त हुआ ii
अब तो कामना है, हे स्वामी !
समस्त मानव है सुप्त हुआ ii
अब तो कामना है, हे स्वामी !
अपना लें सब शिक्षाएं आपकी
मानवता का पाठ पढ़ाती
अनुसरण करें वे राहें आपकी ii
प्रणाम, हे महावीर स्वामी !
By" Nirupma Garg
By" Nirupma Garg
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