{43} दिनांक २३ मार्च, भगतसिंह शहादत दिवस [कविता ]


तमन्ना है कि हम  भारतवासी 
 इस तस्वीर  के आगे  झुक जाएं 
 वीर-गाथा पढ़ने  भगत की
  इतिहास के पन्ने फिर पलटाएं i 

13 अप्रैल ,सन् 1919  ,
 जलियाँवाला काण्ड हुआ 
14 बरस की उम्र थी महज़ ,
 इश्के-वतन परवान चढ़ा 
ज़ुल्मों-सितम की हुई  इन्तहां     
  जुनून न  फिर भी   खत्म हुआ i
 
त्यागी,सेवक,
पीड़ा सह सकने वाले
 युवकों को उसने  तैयार  किया 
तभी से  लायलपुर [पंजाब] का  तारा 
 आँख अंग्रेजों की   चढ़ गया ii

 क्रान्ति के  इरादा था केवल
 सेन्ट्रल असेंबली  में उसने बम फेंका 
 न  किसी को नुक्सान तनिक हो 
 संस्कारों ने उसके  ध्यान रखा   ii  

पीछे पड़ी पुलिस ने उसे
तुरन्त ही गिरफ्तार  किया
कंकड़-पत्थर की रोटी दे कर
भूखा उसको मार दिया ii

भूख में तड़पते भगतसिंह  ने
 " इंकलाब" का नारा दिया
बहरी हुकूमत के कान पड़ जाए
  ज़ोर पूरा  लगा दिया ii

सोचा था अंग्रेजों ने कि
भूखा रह कर  मर जाएगा
अंदाज नहीं था उनको यह
कि वह भूखा शेर बन जाएगा ii

"सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है "
दो टूक उसने  कह दिया
अंग्रेज़ी  हुकूमत को उस वीर ने
 सरेआम ललकार दिया   ii

बढ़ता हौंसला देख भगत का
पसीना गौरों का छूट गया
आनन-फानन में निर्दोष जवाँ को
  फांसी का फरमाँ, सुना दिया

  ठुकरा कर के   माफ़ीनामा
 मौत का फंदा  क़ुबूल किया
"आन्दोलन तेज़ हो "
इस मकसद से
हंस कर उसको चूम लिया ii
  
भारी तादात में जन-सैलाब
एकाएक  जब उमड़ गया  
   24 की जगह , 23 की  रात ही
फांसी  पर उसे   लटका दिया ii 

ज़ार-ज़ार बहते आंसू
" माँ विद्या" के न थे रुक रहे 
  "मत रो  माता बहु तेरे लाल   "
  भगत के नयन थे बोल रहे 

आज  जो  हम जी रहे  हैं
आसाँ नहीं थी यह आज़ादी
  भगतसिंह से कईं युवाओं ने
कुरबां की  थी भरी  जवानी ii

नहीं हिम्मत है गर  कुछ करने की
तो कम से कम,
 देश संजो कर  हम  रख  सकते हैं
विभाजन न हो फिर इसका
इतना तो जतन कर सकते हैं
 यह भी न हो गर हम से तो
     " शुक्रिया " तो भगत को दे  सकते हैं ii

शहीद भगतसिंह को शत-शत नमन !

                                                                                              By: निरुपमा गर्ग
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