{34 } पीड़ा भारत माता की
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई, सब मेरी ही सन्तान हो तुम
कैसे भूलूँ जंगे आज़ादी में
मुझे आज़ाद कराने, सब के सब कूदे थे तुम ii
"इंकलाब जिंदाबाद " के नारे वाला, मेरा हसरत मोहानी था
"खून दो,आज़ादी दूंगा"मेरे सुभाष का नारा था i
"सर फ़रोशी की तमन्ना " बिस्मिल ने दिल में जगाई थी
"स्वतन्त्रता जन्मसिद्ध अधिकार हमारा "गंगाधर ने आवाज़ उठाई थी ii
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई
आज़ भी बोर्डर पर तैनात खड़े i
मेरी रक्षा करने हेतु
कर्तव्य-पथ पर हैं डटे पड़े ii
कितनी पीड़ा में हूँ मैं
उधर भी युद्ध चल रहा
इधर भी युद्ध हो रहा
उधर भी लाल मर रहा
इधर भी लाल मर रहा
ज़ख्म तो क्या कम होंगे मेरे
और नमक है गिर रहा ii
देश-भक्त तो पहले भी थे,क्या उन्होंने कत्ले आम किया ?
बम फेंका था मेरे भगत ने,किसी का नहीं नुक्सान किया i
आज मेरी सन्तान को फिर से कोई ललकार रहा ii
मेरी कोख में फिर से कोई बेरहमी से खंज़र घोंप रहा ii
अपनों को मार कर अपने घर में
कौन सुखी हो पाया है ?
सम्राट अशोक हो,या हो पांडव
पछतावा हाथ ही आया है ii
आपस का वैर छोड़ दो बच्चों
"तुम एक मारो,मैं दस मारूँ
खारिज़ करो सिरे से तुम
लिख कर,बोल कर, भाषण दे कर
अमन का रास्ता दिखा दो तुम ii
बमुश्किल पीड़ा से निकली थी,
बमुशकिल पीड़ा झेल रही
बुझाओ जल्दी से नफ़रत की अग्नि
लपटें मुझे हैं घेर रही
पीड़ा मुझ को हो रही,बच्चों ! पीड़ा मुझ को हो रही ii
कैसे भूलूँ जंगे आज़ादी में
मुझे आज़ाद कराने, सब के सब कूदे थे तुम ii
"इंकलाब जिंदाबाद " के नारे वाला, मेरा हसरत मोहानी था
"खून दो,आज़ादी दूंगा"मेरे सुभाष का नारा था i
"सर फ़रोशी की तमन्ना " बिस्मिल ने दिल में जगाई थी
"स्वतन्त्रता जन्मसिद्ध अधिकार हमारा "गंगाधर ने आवाज़ उठाई थी ii
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई
आज़ भी बोर्डर पर तैनात खड़े i
मेरी रक्षा करने हेतु
कर्तव्य-पथ पर हैं डटे पड़े ii
कितनी पीड़ा में हूँ मैं
उधर भी युद्ध चल रहा
इधर भी युद्ध हो रहा
उधर भी लाल मर रहा
इधर भी लाल मर रहा
ज़ख्म तो क्या कम होंगे मेरे
और नमक है गिर रहा ii
देश-भक्त तो पहले भी थे,क्या उन्होंने कत्ले आम किया ?
बम फेंका था मेरे भगत ने,किसी का नहीं नुक्सान किया i
आज मेरी सन्तान को फिर से कोई ललकार रहा ii
मेरी कोख में फिर से कोई बेरहमी से खंज़र घोंप रहा ii
अपनों को मार कर अपने घर में
कौन सुखी हो पाया है ?
सम्राट अशोक हो,या हो पांडव
पछतावा हाथ ही आया है ii
आपस का वैर छोड़ दो बच्चों
"तुम एक मारो,मैं दस मारूँ
खारिज़ करो सिरे से तुम
लिख कर,बोल कर, भाषण दे कर
अमन का रास्ता दिखा दो तुम ii
बमुश्किल पीड़ा से निकली थी,
बमुशकिल पीड़ा झेल रही
बुझाओ जल्दी से नफ़रत की अग्नि
लपटें मुझे हैं घेर रही
पीड़ा मुझ को हो रही,बच्चों ! पीड़ा मुझ को हो रही ii
Very nice
ReplyDelete