{24 } दुर्दशा मातृभाषा हिन्दी की -14th sept.


विदेशी मूल की बेटी अंग्रेज़ी
अंग्रेजों संग भारत आई थी i
खूब हुई यहाँ ताज-पोशी
क्या किस्मत उसने पाई थी ii

पहला प्यारा "माँ "शब्द
हिन्दी ही  ने सिखाया था i
वेदों का पवित्र ज्ञान
उसने ही सुनाया था ii

सुना है सब वेदों को
विदेशियों  ने चुरा लिया i
पर  दोष क्यूँ  उनको  देना है
  अपनों ने ही  अपनों की
 कद्र  करना  न सीखा  है  ii


लाखों की रोज़ी और रोटी
अंग्रेज़ी ही छीनती है i
फिर भी हिन्दी के  अपने घर में
ठाठ से वह  राज़ करती है ii

हर स्कूल,हर दफ्तर
अंग्रेज़ी का स्वागत करता है i
हिन्दी से नाता रखता जो
उसको "गेट आउट" कहता है ii

यूँ तो हिन्दी हैं हम
हिदोस्तां हमारा है
"अंग्रेज़ी में कुशलता चाहिए"
हर रोज़गार का नारा है ii


 देश के सब  राज्य भी
हिन्दी को बाहर करते हैं  i
मातृ - भाषा को ठुकरा कर
विदेशी को घर पर रखते  हैं  ii

पहले भी अंग्रेज़ी को
 सियासत  ही  लाई थी
अब भी सियासत ही ला रही i
 देश की शान होकर भी
  ठोकर हिन्दी  खा रही ii

 किस्मत के खेल हैं यारों
अंग्रेज़ी पैसे में खेलती है
इसीलिए तो गरीब हिन्दी पर
जम कर हावी होती  है ii

"हिन्दी हमारी मातृ -भाषा है "
कहना मात्र दिखावा है
आडम्बरियों का बच्चा- बच्चा
अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ता है i

 मन से तो भक्त अंग्रेज़ी के
ऊपर से ढोंग रचाते हैं
नहीं तो क्यूँ नहीं समूचे देश में
प्रथम स्थान हिन्दी को  दे  देते हैं i

आई-आई टीज़ , व मेडिकल कालेज
अग्रेज़ी में सब चलते हैं
हिन्दी-भाषी स्कूल के बच्चे
वहां फेल हो कर निकलते हैं i
क्यों नहीं होती वहां हिन्दी वार्ता
प्रश्न क्यों नहीं उठता है ?
हिन्दी में परीक्षा हो
क्या यह नहीं हो सकता है ?

ऊँचे स्वर में जो नेता
हिन्दी की बात करते हैं
अपने बच्चों के कान बंद कर
ज़ोर से ढोल बजाते हैं i

है नहीं गर ऐसा
तो विद्यार्थियों के पक्ष में  आएं  आगे
अंग्रेज़ी ने जिन्हें पिछाड़ दिया है
संस्थानों में जा समाधान निकालें i

 हिन्दी दिवस मनाना  केवल
है तीज , दीपावली, दशहरे  जैसा
हिन्दी को जगह नहीं मिलेगी
जो जैसा  है, बोलो  वैसा |
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