219. गौरी अंग्रेज़ी- एक हास्य कविता
मीठी वाणी बोलती हूं
वेद,पुराण,इतिहास ,गणित
ज्ञान सर्वस्व मैं रखती हूं
अहंकार नहीं है मुझ को अपना
सदा नम्र मैं रहती हूं
",नमस्ते","अभिवादन",'अभिनन्दन'
ये प्रिय हैं शब्द मेरे
फिर भी रहते हैं कोसों दूर
वही,
जो रहते हैं देश मेरे
[ 3 ]
सुबह 'हाय', शाम को 'हाय'
सुख में 'हाय', 'दु:ख' में 'हाय'
बस अॅग्रेज़ों की "हाय"
ही सबको भाती है
पैसा-रुतबा ही प्यारा सबको
इसी लिए तो अपनी भाषा
नहीं किसी को भाती है ।
[ 4 ]
ये गौरी-गौरी अंग्रेज़ी
सब इसका ही वेलकम करते हैं
डालर,रुपया, पैसा सब इस पर ही लुटाते हैं
न स्वर का ही, न व्यंजन का कोई ,
तालमेल बिठाती है
बी.यू.टी {बट] पी.यू.टी {पुट}
सब उल्टा-पुल्टा बोलती है
खिट-पिट, खिट-पिट कर
सबका सिर चकराती है
खाम-खा का रौब झाड कर
अपना सम्मान कराती है ।
ज्ञानी होने पर भी हिन्दी
शर्म से झुकी रहती है
बाहर वालों को तो क्या कहें
घर में ही इज्जत नहीं होती है
[ 5]
इंटरव्यू में देखते हैं
गौरी है या घर वाली है
बोलती है "मेह हाई कम इन "
या हाथ जोडने वाली है
क्या कपडे हैं माडर्न गौरों वाले
या फिर सीधी+सादी है ?
बोल सकती है अंग्रेज़ी तो
नौकरी के लायक है
वरना दिखा दो बाहर का रास्ता
इसके ही यह लायक है
नेता<अभिनेता, गायक्-गायिका
गौरी जैसे बोलते हैं
"हिन्दी हमारी "राष्ट्र भाषा" है
नाटक मंच पर करते हैं
बन्दरिया जैसे हिन्दी भाशी को
नचा-नचा कर हंसते हैं ॥
हाय रे भारतीयों ! मेरी किस्मत
मेहनत मेरी< रोटी बंदर की होती है
भिखारिन जैसी मैं बनी
चांदी तो उसकी होती है
चांदी तो उसकी होती है
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लेखिका-निरुपमा गर्ग
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