208 समुद्र मंथन के कुल कितने रत्न ?
कहा जाता है कि बिहार के बांका के मंदार पर्वत के पास पापहारिणी तालाब समुद्र मंथन का गवाह बना था। विष्णु पुराण से समुद्र मंथन के बारे में जानकारी मिलती है। दरअसल, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्गलोक धन, वैभव और ऐश्वर्य विहीन हो गया था। इस विकट परिस्थिति में स्वर्गलोक के सभी देवता परेशान हो गए और वे समाधान खोजते-खोजते भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उपाय सुझाया। उनका मत था कि असुरों के साथ देवताओं को समुद्र मंथन करना चाहिए। इससे अमृत निकलेगा, जिसे सभी देवता ग्रहण करके फिर से अमर हो जाएंगे। असुरों, वासुकि नाग और मंदार पर्वत की सहायता से देवताओं ने समुद्र मंथन किया। इसके परिणामस्वरूप 14 रत्न प्राप्त हुए। सभी 14 रत्नों से जीवन में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ऐसा मत है कि इन्हीं सीख को अपनाकर देवता पुनः देव गुणों से सम्पन्न हुए।
1. कालकूट विष रत्न -इसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था।
2. कामधेनु रत्न
3. उच्चैश्रवा घोड़ा रत्न-इस रत्न को राजा बलि ने अपने पास रखा था।
4. ऐरावत हाथी रत्न -इस रत्न को भगवान इंद्र ने अपने पास रखा
5. कौस्तुभ मणि रत्न -इस रत्न को भगवान विष्णु ने हृदय पर धारण किया
6. कल्पवृक्ष रत्न - इस रत्न को देवताओं ने स्वर्ग में लगाया था।
7. अप्सरा रंभा रत्न - यह रत्न देवता के पास रहा था।
8. देवी लक्ष्मी रत्न -लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के पास रहना स्वीकार किया।
9. वारुणी देवी रत्न- वारुणी का अर्थ मदिरा होता है। इसको दानवों ने ग्रहण किया था। इ
10. चंद्रमा रत्न- इसे भगवान शंकर ने मस्तक पर धारण किया था।
11. पारिजात वृक्ष रत्न -इसे सभी देवताओं ने ग्रहण किया, क्योंकि इसे स्पर्श करते ही थकान दूर हो जाती थी।
12. पांचजन्य शंख रत्न - भगवान विष्णु ने इसे अपने पास रखा।
13. भगवान धन्वंतरि -दरअसल अंत में 13वें रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। चतुर्भुज रूपी भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुएl अमृत-वितरण के पश्चात देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वन्तरि ने देवों के वैद्य का पद स्वीकार कर लिया और अमरावती उनका निवास स्थान बन गयाl बाद में जब पृथ्वी पर मनुष्य रोगों से अत्यन्त पीड़ित हो गए तो इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से प्रार्थना की वह पृथ्वी पर अवतार लेंl इन्द्र की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान धन्वन्तरि ने काशी के राजा दिवोदास के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण कियाl इनके द्वारा रचित "धन्वन्तरि-संहिता" आयुर्वेद का मूल ग्रन्थ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वन्तरि जी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया थाl
14. अमृत कलश रत्न-भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान करवा दिया था l
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