200 श्री कृश्न को श्री राधा जी क्यों प्रिय हैं ?
पहले मन्वन्तर में एक प्राची मोही नाम का राजा था । वह भगवान विश्नु का बहुत बडा भक्त था । उसने अपने नगर में उनका भव्य मन्दिर बनवाया और नित्य प्रति विधि-विधान से उनकी पूजा किया करता था । उसी नगर में एक अति सुन्दर स्त्री भी रहती थी । वह भगवान विश्नु के मन्दिर में बडे प्रेम से उनकी मूर्ति के समक्ष नृत्य किया करती थी । उसकी एक ही लालसा रहती थी कि वह भगवान की बाहों में बांहें डाल कर नृत्य करे ।
एक दिन उसने अपना सारा धन गरीबों में बांट दिया और मन्दिर में जा कर भगवान के प्रेम में विह्वल हो कर खूब नाची और घंटों नाचती रही तथा नाचते -नाचते भूमि पर गिर कर उसने अपने प्राण त्याग दिए । तब यम के दूत उसे विमान पर बिठा कर स्वर्गलोक ले गए । वहां पहुंच कर वह चन्द्रकीर्ति नाम की अति सुन्दर एव लावण्यमयी देवांगना बनी । उस रूप को पाकर भी वह बार-बार अपने सौन्दर्य को निहारती रहती और सोचती रहती कि मुझ जैसी सुन्दर यौवना के पति केवल श्री कृश्न ही हो सकते हैं , अन्य कोई भी मेरे लायक नहीं है । ऐसा सोच कर वह फिर से नृत्य करने लगी ।
समय बीतने पर राक्षस देवताओं को तंग करने लगे । तब सभी देवता भयभीत हो कर ब्रह्मा जी के पास गए । ब्रह्मा जी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि अति शीघ्र द्वापर युग में भगवान विश्नु नंद गोप के यहां कृश्न के रूप में अवतरित होंगे।तुम सभी देवता एवं देवांगनाएं गोप और गोपियों के रूप में वहां जाओ । तब चंद्रकीर्ति बोली-हे ब्रह्मदेव । मेरी पूर्व जन्म की इच्छा थी कि मैं अपने इष्टदेव के साथ नृत्य करूं । कृपया बताएं कि मेरा मनोरथ कैसे सिद्ध होगा। तब ब्रह्मा जी बोले-तुम जा कर नंद गांव में वृश्भानु नामक गोप के यहां जन्म लो। वहां तुम्हारी भेंट श्री कृश्न से होगी । सब गोपियों में सबसे अधिक तुम ही उन्हें प्रिय होंगीं । वे रासोत्सव में तुम्हारे साथ नृत्य करेंगे । इस तरह हमने जाना कि भगवान श्री कृश्न श्री राधा जी को इतना महत्व क्यूं देते हैं ।
ईश्वर हैं ही इतने दयालु कि अपने भक्त की न केवल सहायता करते हैं अपितु उसे उसे अपने बराबर स्थान दे कर पूरी दुनिया में उसे पूजनीय बना देते हैं । पुराणों में अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं ।
उदाहरण के लिए भक्त माधव व भक्त पुण्डरीकाक्श, से प्र्सन्न हो कर उन्हें पूजनीय बनाने के लिए श्री कृश्न ने अपने आप को माधव और पुण्डरीकाक्श का नाम दिया । यही नहीं कैशी दैत्य को जब उन्होंने मारा तो उसे मोक्श तो दिया ही और स्वयं उसके नाम से वे केशव कहलाने लगे तथा उन्होंने ही घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के त्याग से प्रसन्न हो कर उसे खाटू श्याम का नाम दिया और उसे पूजनीय बना दिया ।
परन्तु इस संसार की मानसिकता सुधरनी बहुत मुश्किल है । इसमें रहने वाले लोग<भक्त माधव<भक्त पुण्ड्रीकाक्श व खाटू श्याम को भग्वान का बोय फ्रेंड नहीं कहेंगे परन्तु भक्त राधा जी को गर्ल फ्रेंड जरूर बताएंगे < और भक्त मीरा को जहर जरूर देंगे । स्त्रियों के प्रति उनकी सोच ही ऐसी है चाहे वे कितनी पवित्र क्यों न हों ।
अत: आज की युवा पीडी को मैं संदेश देना चाहती हूं कि वे गुमराह हो कर अपने को कीचड में न गिराएं । और ये भी अच्छी तरह जान लें श्री कृश्न के अस्तित्व को आज तक कोई मिट। नहीं सका है । कभी कंस और दुर्योधन ने मिटाने की बहुत कोशिश की थी वे दोनों खुद मिट गए पर श्री कृश्न को मिट। न सके । इसलिए सावधान हो जाइए । भग्वान आप सब की रक्शा करे । राधे, राधे, जय श्री राधे ।
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1. ओम दामोदराय नम:=3000जप से 3 लाख जाप करें
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