189. कड़वा सच
दुनिया एक मेला है, झगडों का झमेला है
घर , बाहर , राजनीति या दफ्तर
संसद अथवा टीवी चैनल पर
तू-तू, मैं-मैं होती है
बहस ज़ोरों से होती है
शर्मा जाए लाउडस्पीकर भी
क्या लडेगी मोहल्ले की औरत भी
जो बहस मर्दों में होती है
पुर ज़ोर आवाज़ गूंजती है
[ 2 ]
कुछ कारण से लड़ते हैं
कुछ अकारण ही झगड़ते हैं
कुछ अंग्रज़ी में, कुछ हिन्दी में
कुछ क्षेत्रीय भाषा में लड़ते हैं
2 प्र्तिशत हंसने में , 8 प्र्तिशत कार्य में
90 प्र्तिशत लड-लड कर
जीवन बिताते जनमानस आम
[ 3 ]
दोष भले ही कोई न माने
किस्सा तो "मैं-मैं " का है
'मैं ही भला', 'मैं ही गुणी'
सब पर है अधिकार मेरा
'मैं ही कमाऊं', 'मैं ही खाऊं'
कैसे कोई ले ले स्थान मेरा
इसलिए तो सब लड़ते हैं
अपने लिए सब माफ
औरों के लिए कानून बनाते हैं
[ 4 ]
यूं तो महाभारत प्राचीन ग्रंथ है
धृतराष्ट्र -दुर्योधन अब भी जीवित हैं
गलती से कहीं विदुर मिल जाए
तो समझ लो बुरी गत है ।
[ 5 ]
ताकतवर कमज़ोरों को
खाने को झपटते हैं
बडी मछली छोटी पर जैसे
ऐसे उन पर लपकते हैं
[ 6 ]
श्री राम न बच पाए कैकई से भक्तों
पाण्डव न बच पाए कौरवों से
क्या दशरथ, क्या भीष्मपितामह
सब के सब हारे झमेलों से दोस्तों
[ 7 ]
झमेला एक , झगडा एक
मैं ही खाऊं, मैं ही पहनूं
मैं बैठूं सिंहासन पे
घर में , बाहर, हर जगह
राज करूं मैं शासन पे
[ 8 ]
"कण-कण में भगवान है" ऐसे
प्रवचन ऊंचे देते हैं
पांच ग्यान की इन्द्रियां हैं
पर काम एक से न लेते हैं
[ 7 ]
अपने सा दु:ख औरों का देखें
तभी क्लेश मिट सकता है
अपने सा सुख औरों में बांटे
तभी झमेला हट सकता है
[ 8 ]
माना नहीं जाता , "जहां इस तर्क को"
महाभारत वहीं हो जाता है
क्या अर्थ है इस पवित्र ग्रंथ का
स्पष्ट वहीं हो जाता है ।
======================================================================== लेखिका-निरुपमा गर्ग
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