187 मां भगवती का सिद्ध कुंजिका स्त्रोत -विधि
नोट-कोई भी स्त्रोत पढ़ने से पहले विनियोग, न्यास आदि अवश्य पढ़ना चाहिए
मां भगवती का सिद्ध कुंजिका स्त्रोत : सरल विधि
1.पूर्व दिशा में चौकी बिछा कर उस पर लाल कपडा बिछाएं ।
2.उस आसन पर देवी भगवती का चित्र रखें ।
3.उस चित्र के नीचे एक कोरे सफेद कागज़ पर " ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे । ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।। लिख कर रख दें ।
4.चौकी के बायीं तरफ गाय के घी का एक दीपक जलाने के बाद श्री गणेश जी के प्रतिक रूप में एक बड़ी सुपारी में लाल धागा लपेटकर चावल की ढेरी के आसन पर स्थापित कर आव्हान व पूजन करें,
5.कुशा के आसन पर बैठकर 21 दिनों तक 108 बार इस स्त्रोत मंत्र का जप करें ।
6.चाहें तो प्रतिदिन 11 पाठ करें और एक माला नवार्ण मन्त्र करें ।
सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के लाभ-
सिद्ध कुंजिका स्त्रोत मंत्र को सिद्ध कर जपने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और पीडाएं अपने आप दूर होने लगती है, समाज में मान -सम्मान मिलने के साथ घर में घन -लक्ष्मी की वृद्धि होने लगती हैं ।
समय:-जब सूर्य अस्त हो संध्या का समय हो तब इसका पाठ करने से पूर्ण फल और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है है । साथ ही कुंजिका स्तोत्र का पाठ मध्य रात्रि में करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
1. रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
2. रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।
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अनुष्ठान
1. संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
2. जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।
3. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
4. प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
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1. शुक्ल पक्श की प्र्तिपदा द्वितीया से इसे शुरु कर सकते हैं । या किसी भी मंगलवार या शुक्रवार को शुरु कर सकते हैं ।
2.समय रात्रि 9 बजे के बाद का हो ।
3. लाल वस्त्र स्नान करके धारण करें तथा आसन भी लाल हो \
4.उत्तर या पूर्व दिशा में मुख करके पूजा करें ।
5.साधना से पूर्व गणपति महाराज के एक मंत्र की एक माला करें ।
6.दांय हाथ में जल और चावल लेकर अपना नाम ले कर नौ दिन 51 पाठ का संकल्प करें । और जल भूमि पर छोड दें ।
7.तत्पश्चात हाथ में जल ले कर विनियोग का उच्चारण करें-
‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’
इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करें। यह “शापोद्धार मंत्र” कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है- ‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’ इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।’
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है-
‘ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।’
इस मन्त्र का आरंभ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अंतर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
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