188. किस्सा कर्मों का !
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[ 1 ] ये दिल भी क्या चीज़ है यारों उलझा उलझा रहता है खुद ही सवाल करता है जवाब खुद ही देता है " क्या कर सकता हूं , क्या करूं ? " कश्मोकश में जीता है [ 2 ] समझता है दुनिया को इतना भी नादान नहीं बेबसी से निकल पाए इतना भी होशियार नहीं [ 3 ] कुछ अपनों से, कुछ अपने से कुछ भाग्य से, कुछ कर्मों से