146. क्या आत्महत्या से मुसीबतों से छुटकारा मिल जाता है ? जानिए भगवद्गीता से

Study Claims Suicide Leading Cause For Over 300 Lockdown Deaths In ...

सत्वं रजस्तम इति गुणा : प्रकृतिसम्भवा: i
नि बधनन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्  ii
                                       
सम्पूर्ण भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने प्रकृति के  तीन गुणों- सात्विक, राजस व् तामस  को जीवात्मा के जीवन  व् मृत्यु का आधार बताया है i आइये देखते हैं वे कौन से गुण हैं जो मनुष्य को  आत्म-हत्या की ओर ले जाते हैं i
                                 सबसे पहले हम रजोगुण की बात करते हैं  i रजोगुण  मनुष्य  को आवश्कता से अधिक  लोभी , क्रोधी  व  महत्वाकांक्षी बनाता है i  इस गुण की प्रधानता में स्थित  मनुष्य  स्वभाव से बहुत अधिक  मेहनती होते हैं और सुख-समृद्धि के मालिक होते हैं i फिर भी  वे दिन-रात अपना कारोबार बढाने में लगे रहते हैं , सब कुछ होने पर भी वे चैन की नींद नहीं लेते  i क्योंकि उनका मन स्थिर नहीं रहता i  जैसे अति अधिक रोशनी आँख को अंधा कर  देती है ,  जैसे अति अधिक नशा मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाता है,  तथा जैसे अति अधिक खाना मनुष्य को बीमार कर देता है  वैसे ही अति अधिक  लोभ और इच्छाएं   मनुष्य की बेचैनी बढ़ा देती हैं परिणाम-स्वरूप मनुष्य स्वयम ही भारी नुक्सान उठाने को तैयार हो जाता है ,अंतत: पछताता है और  आत्म-हत्या की ओर बढ़  जाता  है i बड़े बड़े कम्पनियों के मालिक इस दुर्दशा को प्राप्त हुए देखे गए  हैं i इसीलिए  भगवतगीता में कहा गया है "अति सर्वत्र वर्जयेत" i अर्थात् धन कमाओ परन्तु अधिक लोभ न करो i इच्छाएं करो, सपने देखो परन्तु उन पर अपनी जान दांव पर मत लगाओ i क्योंकि जो आज पास  है, हो सकता है वह कल न हो , और जो आज नहीं है, हो सकता है वह कल अपार हो i
                                        दूसरा है तमोगुण i जो मनुष्य को  निराशा , हताशा, आलस्य   व गम में डुबाता है i इस गुण की प्रधानता में मनुष्य    किसी वस्तु से इतना अधिक मोह कर  लेता है  कि उसके न मिलने पर गम में डूब जाता है i  उसकी बुद्धि उचित-अनुचित का विवेक खो देती है और उसका गम उसे आलसी बना देता है i प्रमाद के कारण उसे ऐसा लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता i आजकल  अधिकतर युवा इसी हताशा का शिकार हैं  और  आत्म-हत्या कर  रहे  हैं i वास्तव में वे एक ही काम में प्रतिष्ठा देखते हैं i किसी एक काम के प्रति आकर्षण ही जीवन रूपी समुद्र में ज्वारभाटा लाता है i क्या यह अनुचित नहीं कि एक द्वार बंद हो जाए तो दूसरी ओर से न निकला जाए ? क्या यह अनुचित नहीं कि अपने किसी और हुनर को न पहचाना जाए और हार कर केवल सोच-विचार में डूब कर समय बर्बाद किया जाए और   किसी चीज़  के न मिलने पर कई योनियों के बाद मुश्किल से मिला हुआ जीवन एक झटके में समाप्त कर  दिया जाए ?
                     बस यही  कारण है कि  श्री कृष्ण ने सतोगुण को ही श्रेष्ठ माना है i  क्योंकि यह गुण मनुष्य को ज्ञान के प्रकाश में रखता है जिसके प्रभाव से कुछ भी होता रहे मनुष्य शांत-चित्त रहता है i अपने कार्य और कर्तव्य निभाता है, फ़िर जो भी  फल हो वह उस  की चिंता नहीं करता i वस्तुत: उसमें सुख-दुःख सहने की शक्ति आ जाती है i  वे भी   मनुष्य हैं और अन्यों की भाँति सफलता  न मिलने पर दुखी  होते  हैं  परन्तु सम्भल जाते  हैं  i गीता के दूसरे अध्याय  में  श्री कृष्ण कहते हैं-
                  मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा: i
                  आगमापायिनोऽनित्यास्तान्स्तितिक्षस्व भारत ii
अर्थात् ये सुख-दुःख तो गर्मी-सर्दी जैसे मौसम हैं ,आते हैं, चले जाते हैं i इसलिए हे अर्जुन ! तुम उनको सहन करो i निराशा तो केवल कायर लोग करते हैं i  फिर आत्महत्या से मुसीबतें खत्म नहीं होती अपितु कईं जन्मों तक साथ-साथ चलती हैं i मनुष्य जिस सोच के साथ प्राण त्यागता है वैसा ही उसका अगला जन्म होता है अर्थात् जैसी सोच वैसा जन्म i  गीता के छठे अध्याय में श्री कृष्ण फिर  कहते हैं-
                        तत्र तं बुद्धि संयोगं लभते पौर्वदेहिकम् i
                        यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन ii
अर्थात् जो कुछ भी मनुष्य अपने पहले जन्म में करता है  अगले जन्म में वह उसी की ओर स्वभावत: आकर्षित हो जाता है और वह प्रवत्ति उसमें और अधिक तेज़ हो जाती हैं  i यानि एक जन्म में  हुआ सो हुआ अगले जन्मों में फिर वही हाल  ! नहीं, नहीं i कौन चाहेगा कि ऐसा उसके साथ बार-बार  हो i अत: समझदारी इसी में है कि मनुष्य  आत्म-हत्या का विचार छोड़ कर  शांतचित्त रहे , धैर्य रखे,  आत्म-मंथन करे   तथा ईश्वर को दिल से पुकारे i ईश्वर अवश्य ही कोई न कोई रास्ता सुझा   देते हैं i                               जहाँ निराशा होती है , वहाँ आशा भी अवश्य होती है, जहाँ सुख है वहाँ दुःख की दस्तक भी जरूर होती है i अमीर भी कभी दुःख से गुजरते हैं, गरीब भी कभी सुख के दिन देखते हैं i कड़ी सर्दी झेलने वाले को धूप बहुत अच्छी लगती है, कड़ी धूप सहने वाले को वर्षा सुहानी लगती है i जब भी मनुष्य गिर कर उठता है, तो उसका आनन्द ही कुछ और होता है i
  •  ज़रा आसमान को देखो i उसका भी हृदय फटता है i वह भी  घने बादलों की घुटन से  बरस कर अपना उबाल निकालता है i उसके बाद साफ़,स्वच्छ व् सात रंगों की छटा बिखेरता है i
  • जरा धरती को देखो i वह भी  अत्यधिक दबाव में रहती है जिसके  कारण भुकम्प से हिल जाती है परन्तु फिर शांत हो जाती है i
  • ज़रा वृक्षों को देखो i उनकी ज़िन्दगी में भी  आंधी-तूफ़ान आते हैं जिनसे  टूट कर वे गिर  जाते हैं पर अपनी जड़ें जमाए रखते हैं i
  •                                 भगवद्गीता न केवल जीने की कला है अपितु यह मरने की कला सिखाती है i  "निराशा व् आत्म-हत्या "  जैसे शब्दों को तो उन्होंने गीता के प्रथम अध्याय में ही नकार दिया था जब अर्जुन धनुष छोड़ कर मृत्यु स्वीकार करने को तैयार हो गया था i 
  • उन्होंने द्वितीय अध्याय में बड़ा अच्छा उदाहरण दिया है i की जैसे समुद्र में अनेक नदियाँ आ कर गिरती हैं परन्तु वहअपनी सीमा से बाहर नहीं जाता ठीक उसी प्रकार मनुष्य का मन भी एक समुद्र है जिसमें कितने विचार आते हैं परन्तु मनुष्य समुद्र की भाँति सीमाओं में स्थिर नहीं रहता और जब वह सीमाएं लांघता है तो उसके जीवन में भारी तूफान आ जाता है i अत: मनुष्य को सदा सुख-दुःख, जीत-हार , सफलता-असफलता में स्थिर-बुद्धि रहना चाहिए i कहा भी गया है -
  • तन भागता है तो वह  स्वस्थ होता है 
  • लेकिन यदि मन भागता है तो वह  बीमार हो जाता है i
  •               सर्वे भवन्तु सुखिन: i
                                             लेखिका-निरुपमा गर्ग 
                                       

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