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Showing posts from June, 2020

147. आत्म-मंथन [ कविता ]

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बंद दरवाज़े कर, मैं तन्हा इक रोज़ कुर्सी पर बैठी थी चाय का प्याला हाथ में ले कर  इधर-उधर-----------  जाने क्या मैं   देख  रही थी    "खटखट- खट" इतने में   आवाज़ सी  एक अचानक  आई सूने-सूने मेरे मन को वो अजनबी थी  कितनी भाई  है  कोई शायद, देखूँ ज़रा अभी उठ कर मैं  सोच  रही थी  झट से भीतर आया कोई मैं न उसे पहचान रही थी न कोई रंग, न कोई रूप न कोई  आकार, न प्रकार नहीं दिख रहा था आगन्तुक  कोई  आ कर  बैठ गया वह  ऐसे जैसे  चिर-परिचित हो कोई बचपन की याद दिला  कर वह कभी मुझे    हंसाता था मित्र गलत थे मैं ठीक थी उचित  मुझे ठहराता था फ़िर यहाँ गलत थी, वहाँ गलत थी दोष   मुझे गिनाता था दुःख के पल याद करा कर ख़ूब    मुझे रुलाता था मुझ को रोता देख मित्रवत सुख  के पल   याद करा कर फ़िर से  मुझे हंसाता था पलट रहा था एक-एक करके मेरे जीवन के वो   पन्ने कौन था जाने मेरे द्वार पर जो  चुन-चुन कर मोड़ रहा था  कुछ उनमें   पन्नों के कन्ने झट उठ कर कुर्सी से देखा बंद थे सारे घर के दरवाज़े फ़िर जा कर अहसास हुआ   वो  तो बैठा था   मन के द्वारे करा रहा था आत्म-मंथन ब

146. क्या आत्महत्या से मुसीबतों से छुटकारा मिल जाता है ? जानिए भगवद्गीता से

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सत्वं रजस्तम इति गुणा : प्रकृतिसम्भवा: i नि बधनन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्  ii                                         सम्पूर्ण भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने प्रकृति के  तीन गुणों- सात्विक, राजस व् तामस  को जीवात्मा के जीवन  व् मृत्यु का आधार बताया है i आइये देखते हैं वे कौन से गुण हैं जो मनुष्य को  आत्म-हत्या की ओर ले जाते हैं i                                  सबसे पहले हम रजोगुण की बात करते हैं  i रजोगुण  मनुष्य  को आवश्कता से अधिक  लोभी , क्रोधी  व  महत्वाकांक्षी बनाता है i  इस गुण की प्रधानता में स्थित  मनुष्य  स्वभाव से बहुत अधिक  मेहनती होते हैं और सुख-समृद्धि के मालिक होते हैं i फिर भी  वे दिन-रात अपना कारोबार बढाने में लगे रहते हैं , सब कुछ होने पर भी वे चैन की नींद नहीं लेते  i क्योंकि उनका मन स्थिर नहीं रहता i  जैसे अति अधिक रोशनी आँख को अंधा कर  देती है ,  जैसे अति अधिक नशा मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाता है,  तथा जैसे अति अधिक खाना मनुष्य को बीमार कर देता है  वैसे ही अति अधिक  लोभ और इच्छाएं   मनुष्य की बेचैनी बढ़ा देती हैं परिणाम-स्वरूप मनुष्य स्वयम ही भारी नुक्सान