141. मैं नारी, मै गृह-लक्ष्मी [ नारीं दिवस-कविता ]


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मै वर-लक्ष्मी, मैं गृह-लक्ष्मी
मैं कारपोरेट जगत की धन लक्ष्मी
 मैं सन्तान-लक्ष्मी, मैं संग्राम-लक्ष्मी
हर क्षेत्र में  रहती   हूँ मैं  सक्षमी i

 आसमान में उड़ती हूँ मैं
धरा  पर वाहन चलाती हूँ  मैं
जल-तैराकी की तरणी   हूँ मै
क्रीड़ा-क्षेत्र में अग्रणी हूँ मैं
गृहस्थ-जीवन की  सुगृहणी  हूँ मैं
विश्व-विजेता सुन्दरी हूँ मैं

मैं परम-पवित्र पद्मावत रानी
मैं गंग-धार हूँ  अति पावनी
मै सती अनुसूया , मै सावित्री
मै ही  सृष्टि की दिन व रात्री

मै ही  धीरज, मैं  ही  धर्म
मैं  ही  मित्र,    मैं ही  अर्धांगिनी
मैं वीरों की वीरांग्नी
टूट रहा हो जब   पुरुष संकट में
तो  पुरुष से अधिक सहिष्णु हो कर 
मैं ही बनती  धैर्य-वाहिनी  i

बिन मेरे " हे पुरुष समाज"
तेरा  कोई वौज़ूद नहीं
जैसे जल की धारा बिन
जीवन का कोई  अस्तित्व नही i

भले ही समाज में पुरुष प्रधान है
फ़िर भी अर्धांग में
मुझ  नारी का  विशेष स्थान है
कदमताल मैं  करती हूँ
कान्धा मिला कर  चलती हूँ
जीवन की गाड़ी  में फिट हो कर
 सुचारू उसे  चलाती हूँ  i

शास्त्र कहते हैं -
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र  देवता " 
मैं न कहती," मुझ को पूजो "
मैं आंगन की शोभा का पौधा
प्रेम से बस तुम  मुझ को  सींचो
तार-तार न हो अस्मत मेरी
इतना जतन बस तुम कीजो

टूटती  है नारी जब तो
बिखर जाता है घर-परिवार
नारी को खत्म करोगे तो
कहाँ  से होगा पुरुष-समाज ?

अबला हो कर भी एक नारी
सबल समाज बनाती है
उसकी अश्रुधारा ही
क्षमा का सागर बहांती है
उसके आंचल का वो पल्लू
ममता की छाया देता है
उसकी कोख का वो जादू
जो कर्ज़ का फर्ज सिखाता है

नारी गौरव है समाज-देश का
गौर से इसे पहचानो  तुम
न दुत्कारो कभी इसे
मोल को इसके सम्मानों तुम i 
धन्यवाद i
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 By: Nirupma Garg






  

Comments

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस पर
    हार्दिक शुभकामनाएं🙏

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस पर
    हार्दिक शुभकामनाएं🙏

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