{8 2 } राजनीति का कूँआ
सोम एक होनहार युवा, पढ़ाई में अव्वल,और संस्कारों में भारत की जीती जागती तस्वीर था i बचपन से एक ही ख्वाहिश थी कि डाक्टरी पेशे में महारत हासिल करके अपने आस-पास के गरीब लोगों की सेवा करनी है i ईश्वर ने भी सम्भवत: पहले से ही उस युवा को मानवता की सेवा के लिए चुन कर ही पृथ्वी पर भेजा था i सरस्वती ने दिल खोल कर इतना हुनर दिया कि वह बिना किसी टेस्ट के मरीज़ की नब्ज़ पकड़ कर बता देते थे कि असल में उसे हुआ क्या है i आजकल टेस्टों का दस्ता नहीं बता सकता कि मरीज़ किस रोग से ग्रस्त है i और फ़ीस इतनी ! कि उम्र के बराबर तराजू में तौल कर डाक्टर साहब को दान कर दिए जाएं तब भी वह दान निष्फल ही रहता है i पर सोम की आस्था तो दान लेने में नहीं अपितु दान देनें में थी i कोई भी गरीब व्यक्ति हाथ जोड़ कर कहता कि उसके पास पैसे नहीं हैं , डाक्टर साहब कुछ नहीं बोलते थे i उनकी सेवा से खुश होकर किसान उनके घर हरी-ताज़ी सब्जियां दे देते या कोई बहुत अमीर उनके क्लीनिक में चढ़ते तो 20-30 रूपए दे देते i वह भी एक जमाना था जब इतने पैसों की कीमत बहुत ज़्यादा थी i उन्हें पाकर डाक्टर साहब ईश्वर का धन्यवाद करते हुए कहते-
दाता इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय i मै भी भूखा न रहूँ, साधू ना भूखा जाय ii
देखते ही देखते डाक्टर साहब इतने प्रसिद्ध हो गए कि केवल उनके नाम से ही कोई भी अजनबी उनके घर पहुंच जाता था i उनके घर का पता बताने की आवश्यकता नहीं पडती थी i उनकी यह ख्याति राजनेताओं के कान में भी पड़ गई i और उन्हें अलग-अलग पार्टियाँ अपनी-अपनी सेवा का मौका देने लगीं i जब उन्होंने मना करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि यह भी तो जनता की ही सेवा है i लिहाज़ा डाक्टर साहब x पार्टी की ओर हो लिए i बस यहीं से उनकी ख्याति को ग्रहण लगना आरम्भ हो गया i राजनीति का मतलब -भ्रष्ट, लोभ, तथा झूठ i का दाग लगना तय है i भला जो डाक्टर मरीजों से पैसे नहीं लेता था वह ऐसा कैसे हो सकता था i यह बात केवल ईश्वर जानता था कि डाक्टर साहब ने कभी अपनी पार्टी से कोई पैसा नहीं लिया था i परन्तु विपक्ष के हमले ज़ोरों पर थे, दिन भर उन पर गालियों की बौछार करते और संध्या के समय मुफ्त दवाई ले जाते i जितना गहरा राजनीति का कूँआ ,उतना ही विषैला उसका पानी, यह सत्य चट्टान की तरह अटूट है i नफ़रत ने इस कद्र विपक्षियों को अंधा कर दिया था कि उन्होंने डाक्टर साहब को जान से मारने की योजना बना डाली i योजना के तहत कट्टर कार्यकर्ता ने अपने छोटे बच्चे को मरा हुआ घोषित करके डाक्टर साहब पर लापरवाही का आरोप लगाना और उनसे हाथापाई करके जान से मारना था i यह योजना कामवाली बाई जान गई थी और उसने घबरा कर डाक्टर साहब से दो दिन के लिए बाहर जाने की सलाह दे डाली i कुदरत का करिश्मा देखिए i योजक का बच्चा सख्त बीमार पड़ गया i डाक्टर साहब दो दिन के लिए बाहर चले गए थे ,इसलिए वह पागलों की तरह अपने बच्चे को ले कर इधर-उधर डाक्टरों पर घूमा i पैसा पानी की तरह बहा दिया पर उसे डाक्टर साहब जैसा हुनर कहीं नहीं मिला i दो दिन बाद जब डाक्टर साहब आए तो उसने उनका दरवाज़ा खटखटाया और अति शीघ्र अपने घर चलने को कहा i मानवता का मसीहा ने राजनीति को अपनी प्रतिज्ञा के आड़े नहीं आने दिया और तुरंत तैयार हो गया और बच्चे की नब्ज़ जानकर उसका इलाज़ किया i योजक की जान में जान आई i रोता हुआ बोला-
डाक्टर साहब कल यदि मै अनर्थ कर बैठता तो आज़ न मेरा बच्चा होता और न आप जैसा मसीहा i हे ईश्वर ! ये मै क्या करने जा रहा था i जिस समय मैं तड़प रहा था , मेरा नेता अपने आलीशान महल में दो रूपए के पूरी-आलू का आनन्द ले रहा था i यदि वह मेरे बच्चे को महंगे अस्पताल ले जाता तो मानता कि वह मेरा हितैषी है i घूमता और ऐश तो वह करता है , हम तो छोटी सी चींटियाँ हैं, चाहे तो वे कुचल दें ,चाहे तो दाना दाल दें i ये राजनीति नहीं ,विषैला कूँआ है, कूँआ i इसे केवल नेताओं के लिए छोड़ देना चाहिए i ऐसा कह कर वह भरे बाज़ार में डाक्टर साहब के पैरों में गिर गया i डाक्टर साहब ने उसे उठा कर गले लगाया और सदा के लिए मन-मुटाव खत्म कर दिया i
शिक्षा -देश के लिए सोचना बुरी बात नहीं, बुरा है तो बस गलतियों का साथ देकर उन्हें बढ़ावा देना i कार्यकर्ता होते तो जनता ही हैं, कोई नेता नहीं i जैसे जवान शहीद होने के बाद गुमनामी के अँधेरे में कहीं खो जाते हैं, ठीक वैसे ही गुस्साई भीड़ के शिकार हुए न जाने कितने बेटे, कितने पति शहीद हो जाते हैं i कभी भी सुनने में नहीं आता कि उनके स्वयं के बच्चे जुलूस में सम्मिलित होते हैं i अपितु वे सब तो विदेशों में पढ़ते हैं i पेंशन, गाडी, बंगले, पेंशन, महंगे अस्पतालों के इलाज़ , आदि सब नेता बटोर कर ले जाते हैं i और पर्दे के पीछे ये लोग क्या करते हैं ,यह न कार्यकर्ता जानते हैं और न ही जनता i और नेताओं का क्या ? आज इस पार्टी में, कल दूसरी पार्टी में i आखिर सुख- सुविधाएं किसे नहीं चाहिएं i पर अफ़सोस कोई इस बात को नहीं समझना चाहता कि ऐसा शासन हो जिसमें अमन चैन हो, भ्रष्टाचार, खत्म हो , सब बच्चे सुरक्षित हों लेकिन यह क्या ? नफ़रत की अग्नि स्वयं को लगा लेते हैं i जिन्दी सुधारने की अपेक्षा और नर्क बना लेते हैं i खैर, गहरे कूएँ में यदि कोई जान-बूझ कर गिर जाए तो उसे कौन बचा सकता है ? सम्भवत: कोई नहीं i प्रजातंत्र की खूबसूरती यही है है कि जनता को अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग करने का मौका मिले i उसे जो पसंद हो उसे वोट दे कर चुन ले , उसके लिए किसी हत्या का पाप अपने सर क्यों लेना? आखिर इश्वर को जवाब कौन देगा ? -स्वयं या फिर नेता ? लोग चुनाव जीतने के लिए हत्या का रुख़ क्यों अपनाते हैं ? क्या प्रचार से आवाज़ जनता तक नहीं पहुंचती ?
नोट:- यह कहानी एक छोटे से कस्बे में क्लीनिक चलाने वाले डाक्टर साहब की सच्ची घटना पर आधारित है i केवल नाम, व पता लुप्त किए गए हैं i ल
दाता इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय i मै भी भूखा न रहूँ, साधू ना भूखा जाय ii
देखते ही देखते डाक्टर साहब इतने प्रसिद्ध हो गए कि केवल उनके नाम से ही कोई भी अजनबी उनके घर पहुंच जाता था i उनके घर का पता बताने की आवश्यकता नहीं पडती थी i उनकी यह ख्याति राजनेताओं के कान में भी पड़ गई i और उन्हें अलग-अलग पार्टियाँ अपनी-अपनी सेवा का मौका देने लगीं i जब उन्होंने मना करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि यह भी तो जनता की ही सेवा है i लिहाज़ा डाक्टर साहब x पार्टी की ओर हो लिए i बस यहीं से उनकी ख्याति को ग्रहण लगना आरम्भ हो गया i राजनीति का मतलब -भ्रष्ट, लोभ, तथा झूठ i का दाग लगना तय है i भला जो डाक्टर मरीजों से पैसे नहीं लेता था वह ऐसा कैसे हो सकता था i यह बात केवल ईश्वर जानता था कि डाक्टर साहब ने कभी अपनी पार्टी से कोई पैसा नहीं लिया था i परन्तु विपक्ष के हमले ज़ोरों पर थे, दिन भर उन पर गालियों की बौछार करते और संध्या के समय मुफ्त दवाई ले जाते i जितना गहरा राजनीति का कूँआ ,उतना ही विषैला उसका पानी, यह सत्य चट्टान की तरह अटूट है i नफ़रत ने इस कद्र विपक्षियों को अंधा कर दिया था कि उन्होंने डाक्टर साहब को जान से मारने की योजना बना डाली i योजना के तहत कट्टर कार्यकर्ता ने अपने छोटे बच्चे को मरा हुआ घोषित करके डाक्टर साहब पर लापरवाही का आरोप लगाना और उनसे हाथापाई करके जान से मारना था i यह योजना कामवाली बाई जान गई थी और उसने घबरा कर डाक्टर साहब से दो दिन के लिए बाहर जाने की सलाह दे डाली i कुदरत का करिश्मा देखिए i योजक का बच्चा सख्त बीमार पड़ गया i डाक्टर साहब दो दिन के लिए बाहर चले गए थे ,इसलिए वह पागलों की तरह अपने बच्चे को ले कर इधर-उधर डाक्टरों पर घूमा i पैसा पानी की तरह बहा दिया पर उसे डाक्टर साहब जैसा हुनर कहीं नहीं मिला i दो दिन बाद जब डाक्टर साहब आए तो उसने उनका दरवाज़ा खटखटाया और अति शीघ्र अपने घर चलने को कहा i मानवता का मसीहा ने राजनीति को अपनी प्रतिज्ञा के आड़े नहीं आने दिया और तुरंत तैयार हो गया और बच्चे की नब्ज़ जानकर उसका इलाज़ किया i योजक की जान में जान आई i रोता हुआ बोला-
डाक्टर साहब कल यदि मै अनर्थ कर बैठता तो आज़ न मेरा बच्चा होता और न आप जैसा मसीहा i हे ईश्वर ! ये मै क्या करने जा रहा था i जिस समय मैं तड़प रहा था , मेरा नेता अपने आलीशान महल में दो रूपए के पूरी-आलू का आनन्द ले रहा था i यदि वह मेरे बच्चे को महंगे अस्पताल ले जाता तो मानता कि वह मेरा हितैषी है i घूमता और ऐश तो वह करता है , हम तो छोटी सी चींटियाँ हैं, चाहे तो वे कुचल दें ,चाहे तो दाना दाल दें i ये राजनीति नहीं ,विषैला कूँआ है, कूँआ i इसे केवल नेताओं के लिए छोड़ देना चाहिए i ऐसा कह कर वह भरे बाज़ार में डाक्टर साहब के पैरों में गिर गया i डाक्टर साहब ने उसे उठा कर गले लगाया और सदा के लिए मन-मुटाव खत्म कर दिया i
शिक्षा -देश के लिए सोचना बुरी बात नहीं, बुरा है तो बस गलतियों का साथ देकर उन्हें बढ़ावा देना i कार्यकर्ता होते तो जनता ही हैं, कोई नेता नहीं i जैसे जवान शहीद होने के बाद गुमनामी के अँधेरे में कहीं खो जाते हैं, ठीक वैसे ही गुस्साई भीड़ के शिकार हुए न जाने कितने बेटे, कितने पति शहीद हो जाते हैं i कभी भी सुनने में नहीं आता कि उनके स्वयं के बच्चे जुलूस में सम्मिलित होते हैं i अपितु वे सब तो विदेशों में पढ़ते हैं i पेंशन, गाडी, बंगले, पेंशन, महंगे अस्पतालों के इलाज़ , आदि सब नेता बटोर कर ले जाते हैं i और पर्दे के पीछे ये लोग क्या करते हैं ,यह न कार्यकर्ता जानते हैं और न ही जनता i और नेताओं का क्या ? आज इस पार्टी में, कल दूसरी पार्टी में i आखिर सुख- सुविधाएं किसे नहीं चाहिएं i पर अफ़सोस कोई इस बात को नहीं समझना चाहता कि ऐसा शासन हो जिसमें अमन चैन हो, भ्रष्टाचार, खत्म हो , सब बच्चे सुरक्षित हों लेकिन यह क्या ? नफ़रत की अग्नि स्वयं को लगा लेते हैं i जिन्दी सुधारने की अपेक्षा और नर्क बना लेते हैं i खैर, गहरे कूएँ में यदि कोई जान-बूझ कर गिर जाए तो उसे कौन बचा सकता है ? सम्भवत: कोई नहीं i प्रजातंत्र की खूबसूरती यही है है कि जनता को अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग करने का मौका मिले i उसे जो पसंद हो उसे वोट दे कर चुन ले , उसके लिए किसी हत्या का पाप अपने सर क्यों लेना? आखिर इश्वर को जवाब कौन देगा ? -स्वयं या फिर नेता ? लोग चुनाव जीतने के लिए हत्या का रुख़ क्यों अपनाते हैं ? क्या प्रचार से आवाज़ जनता तक नहीं पहुंचती ?
नोट:- यह कहानी एक छोटे से कस्बे में क्लीनिक चलाने वाले डाक्टर साहब की सच्ची घटना पर आधारित है i केवल नाम, व पता लुप्त किए गए हैं i ल
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