छोटे से शहर में एक गरीब परिवार रहता था i घर का मुखिया स्कूल में अध्यापक था i चार बच्चों का परिवार पालता और मन ही मन सोचता, जाने कब होगा अपना आशिआना, कब चहकेंगे आंगन में उसके प्यारे से बच्चे i सत्रह बरस बीत गए इसी स्कूल में नौकरी करते , अभी तक कुछ नहीं बन पाया i बन जाएगा i ईश्वर इतना भी क्रूर नहीं i -कुम्हार जब घड़ा बनाता है, वह बाहर से तेज़ थपथपाता है और अंदर प्यार से सहलाता है i मुझे विशवास है कि मेरा कुम्हार मुझे कभी टूटने नहीं देगा i एकाएक ईश्वर के आगे उसका सीस झुक जाता i "हे ईश्वर'' ! तेरे फैंसले हमारी ख्वाहिशों से बेहतर होते हैं , यूँ ही नहीं , ठोकर खा कर लोग,दर तेरे सजदा करते हैं i दीन दशा, आँखों में करुणा, मन में ईश्वर के प्रति आस्था तथा मन में उठ रही लहरों की दी हुई लोरियों ने कब नींद दिला दी , पता ही नहीं चला i सुबह फिर स्कूल, वही...