{40} हिम्मत -ए -मर्दा, मदद-ए-खुदा
एक लघु कथा-
ध्रुव, एक बहुत ही होनहार, सुशील और संस्कारी बच्चा था i नम्रता तो जैसे उसके होठों ने जन्म-जन्मान्तरों से कैद कर रखी थी i बस एक ही कमी थी कि वह मेहनत करने के बावजूद भी मनचाही मंजिल नहीं पा रहा था i पिता से डरता था i कहीं उनसे कहा तो सुनने को मिलेगा -" ढूंढोगे तो रास्ते मिलेंगे न , बेटा ! मंजिलों की फितरत है, वे खुद चल कर नहीं आती i सोचने से नहीं मिला करते तमन्ना के शहर, चलने की जिद्द भी जरूरी है,मंज़िलों के लिए i मेहनत से उठा हूँ,मेहनत का दर्द जानता हूँ और छालों में पड़ी लकीरों का असर जानता हूँ i " खैर माँ तो अवश्य सुनेगी", यह सोच कर उसने उससे दिल का दर्द कह डाला i माँ कुछ धार्मिक प्रवृत्ति की थी i झट ज्योतिषी के पास जा पहुंची i ज्योतिषी ने राशि-फल पढ़ा और पूजा बता दी i पूजा पिता के बिना हो नहीं सकती थी i इसलिए बेटे को पीछे कर पत्नी ने पति से गुहार लगाई i पूजा भी हो गई i पर समस्या ज्यों की त्यों खड़ी रही i बेटे ने माँ से कहा- माँ,पंडित जी के पास फिर जाओ और बोलो कि कुछ नहीं हुआ i ममता की मारी माँ उसे फिर पंडित जी के पास ले गई i पंडित जी ने श्री कृष्ण की बांसुरी निकाल कर ध्रुव को दी और कहा -बेटा ! इसे बजाओ i ध्रुव को बांसुरी बजानी नहीं आती थी i सो उसने पंडित जी से बता दिया i पंडित जी ने कहा,"सही कहा बेटा,तुम्हें सही ढंग से काम को पकड़ना नहीं आ रहा है ,इसलिए तुम असफल हो i देख रहे हो ? इस बांसुरी में कितने बाधाओं रूपी छिद्र हैं , फिर भी कृष्ण पूरे मग्न हो कर इसे बजाते हैं, और ऐसी मधुर तान निकालते हैं कि हर किसी का मन गद्गद हो जाता है i जिस दिन तुम भी बाधाओं को पार कर जीवन रूपी बांसुरी को सही ढंग से पकड़ कर बजाओगे उस दिन खुद जीवन की मधुर तान तुम्हें सुनाई देने लगेगी i
अपने कर्म पर विशवास रखो, राशियों पर नहीं
राशि तो एक थी राम और रावण की भी
नियति ने फल उन्हें कर्म का दिया,राशि का नहीं ii
और सुनो बेटा,
लग्न हर मुश्किल को आसान बना देती है
हर ख़ाली पड़ी इमारत मन्दिर नहीं बन जाती
ये इबादत ही है जो पत्थर को भगवान बना देती है ii
एक बार तो पंडित जी की बात सुन कर ध्रुव के मन में गुस्सा आया कि यदि पंडित जी ने यही कहना था तो पूजा
क्यों रखवाई थी ? पर कभी लगता था कि शायद ठीक कह रहे हैं, थोड़ी देर बाद सोचता कि मेहनत तो की थी फिर भी काम नहीं बना i मस्तिष्क में कश्मकश चल ही रही थी कि तभी किसी पुराने जिगरी दोस्त ने दरवाज़ा खटखटाया i ध्रुव को तिनके का सहारा मिल गया i उसने उसे भी मन की व्यथा सुना डाली i दोस्त भी पंडित की ही तरह प्रवचन देने लगा- मुसीबतें थोड़ी देर की होती हैं मेरे दोस्त i धैर्य रखो i सूरज भी धीरे-धीरे ऊपर चढ़ता है i कामयाबी का जूनून होना चाहिए फिर मुश्किलों की औकात क्या है i ऐसा लग रहा था मानो कोई दूसरा पंडित मिल गया हो i बातों ही बातों में दोनों बाहर घूमने निकल गए कि उनके गुरु जी मिल गए i हाल-चाल पूछने लगे i ध्रुव से अपनी गाथा कहे बिना फिर न रहा गया i फिर वही उपदेश शुरू हो गया- बेटा, परिंदे शुक्रगुजार हैं पतझड़ के,तिनके कहां से लाते---अगर सदा बहार रहती i इसलिए "positive " ही सोचो i जितने लोग,उतने प्रवचन i मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी i वह मन से,तन से ऐसे सत्य की ख़ोज में निकल पड़ा जैसे महावीर स्वामी या गौतम बुद्ध निकले हों i संयोग से रास्ते में एक ऋषि मिल गए i सोचा चलो -इन से भी बात कर के देख लिया जाए i जब उसने उन्हें अपनी समस्या बताई तो उन्होंने अपना कमंडल उसके हाथ में थमा दिया और बोले कि किसी ऐसे घर से भिक्षा ले कर आओ जो घर पूरी तरह खुशहाल हो i सोचा कि यही कसर बाकी रह गई थी ,चलो कर लेते हैं i सुबह से शाम हो गई कोई ऐसा घर नहीं मिला i ध्रुव झल्ला उठा i कुछ नहीं है इस दुनिया में i खुशियाँ कम हैं, अरमान बहुत हैं i जिसे भी देखो परेशान बहुत है i करीब से देखो तो रेत का घर है ,मगर दूर से इसकी शान बहुत है ii अपने आप से बातें करता हुआ कब ऋषि के पास पहुंच गया ,पता ही नहीं चला i आँखों में आंसू थे,गला भर्राया था, बोला -ऋषिवर i मुझे तो ऐसा उपाय बता दो कि मैं मौत को गले लगा लूँ i ऋषिवर कुछ नहीं बोले i बस चुपचाप दो बड़े कटोरे पानी के ले आए i एक में खौलता पानी था और एक में ठंडा i बोले -पहले गर्म पानी में अपनी परछाई देखो i उसने उसमें झाँक कर देखा i उसे दिखाई नहीं दी i फिर उन्होंने उसे ठंडे पानी वाला कटोरा दिया i बोले अब देखो i उसे उसमें अपनी परछाई दिख गई i बोले अब तुम घर जाओ i अरे ,अजीब है यह ऋषि i इतनी देर झक मरवाई और अब कह रहे हैं घर जाओ i उसके बिना बोले ही ऋषिवर उसके मन की बात जान गए i बोले ठंडे पानी की भांति अपना मन शांत करो, अपनी परछाई को गहराई से समझो कि उसमें क्या कमी है तुम्हें सफलता का रास्ता जरूर मिल जाएगा i तुम्हारा कल्याण हो i यह सुनते ही वह उनके चरणों में नतमस्तक हो गया i ॠषि वर भी बिलकुल उसी स्वभाव के थे जैसे एक डॉक्टर किसी मरीज़ को दर्द सहने का हौंसला देता है i उन्होंने उसका हौंसला बढाते हुए कहा -बेटा ! तुम युवा हो ,बहुत कुछ कर सकते हो i आत्म-हत्या का विचार छोड़ कर नए सिरे से शुरुआत करो i फिर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए कुछ शायराना अन्दाज़ में बोले-
हिम्मत में जो ताकत है, ज़माने को दिखा दो
सर पक्के इरादे से खुदाई को झुका दो i
तकदीर की तहरीर तो कोई चीज़ नहीं है
तदबीर से तकदीर की तहरीर मिटा दो ii
ध्रुव, एक बहुत ही होनहार, सुशील और संस्कारी बच्चा था i नम्रता तो जैसे उसके होठों ने जन्म-जन्मान्तरों से कैद कर रखी थी i बस एक ही कमी थी कि वह मेहनत करने के बावजूद भी मनचाही मंजिल नहीं पा रहा था i पिता से डरता था i कहीं उनसे कहा तो सुनने को मिलेगा -" ढूंढोगे तो रास्ते मिलेंगे न , बेटा ! मंजिलों की फितरत है, वे खुद चल कर नहीं आती i सोचने से नहीं मिला करते तमन्ना के शहर, चलने की जिद्द भी जरूरी है,मंज़िलों के लिए i मेहनत से उठा हूँ,मेहनत का दर्द जानता हूँ और छालों में पड़ी लकीरों का असर जानता हूँ i " खैर माँ तो अवश्य सुनेगी", यह सोच कर उसने उससे दिल का दर्द कह डाला i माँ कुछ धार्मिक प्रवृत्ति की थी i झट ज्योतिषी के पास जा पहुंची i ज्योतिषी ने राशि-फल पढ़ा और पूजा बता दी i पूजा पिता के बिना हो नहीं सकती थी i इसलिए बेटे को पीछे कर पत्नी ने पति से गुहार लगाई i पूजा भी हो गई i पर समस्या ज्यों की त्यों खड़ी रही i बेटे ने माँ से कहा- माँ,पंडित जी के पास फिर जाओ और बोलो कि कुछ नहीं हुआ i ममता की मारी माँ उसे फिर पंडित जी के पास ले गई i पंडित जी ने श्री कृष्ण की बांसुरी निकाल कर ध्रुव को दी और कहा -बेटा ! इसे बजाओ i ध्रुव को बांसुरी बजानी नहीं आती थी i सो उसने पंडित जी से बता दिया i पंडित जी ने कहा,"सही कहा बेटा,तुम्हें सही ढंग से काम को पकड़ना नहीं आ रहा है ,इसलिए तुम असफल हो i देख रहे हो ? इस बांसुरी में कितने बाधाओं रूपी छिद्र हैं , फिर भी कृष्ण पूरे मग्न हो कर इसे बजाते हैं, और ऐसी मधुर तान निकालते हैं कि हर किसी का मन गद्गद हो जाता है i जिस दिन तुम भी बाधाओं को पार कर जीवन रूपी बांसुरी को सही ढंग से पकड़ कर बजाओगे उस दिन खुद जीवन की मधुर तान तुम्हें सुनाई देने लगेगी i
अपने कर्म पर विशवास रखो, राशियों पर नहीं
राशि तो एक थी राम और रावण की भी
नियति ने फल उन्हें कर्म का दिया,राशि का नहीं ii
और सुनो बेटा,
लग्न हर मुश्किल को आसान बना देती है
हर ख़ाली पड़ी इमारत मन्दिर नहीं बन जाती
ये इबादत ही है जो पत्थर को भगवान बना देती है ii
एक बार तो पंडित जी की बात सुन कर ध्रुव के मन में गुस्सा आया कि यदि पंडित जी ने यही कहना था तो पूजा
क्यों रखवाई थी ? पर कभी लगता था कि शायद ठीक कह रहे हैं, थोड़ी देर बाद सोचता कि मेहनत तो की थी फिर भी काम नहीं बना i मस्तिष्क में कश्मकश चल ही रही थी कि तभी किसी पुराने जिगरी दोस्त ने दरवाज़ा खटखटाया i ध्रुव को तिनके का सहारा मिल गया i उसने उसे भी मन की व्यथा सुना डाली i दोस्त भी पंडित की ही तरह प्रवचन देने लगा- मुसीबतें थोड़ी देर की होती हैं मेरे दोस्त i धैर्य रखो i सूरज भी धीरे-धीरे ऊपर चढ़ता है i कामयाबी का जूनून होना चाहिए फिर मुश्किलों की औकात क्या है i ऐसा लग रहा था मानो कोई दूसरा पंडित मिल गया हो i बातों ही बातों में दोनों बाहर घूमने निकल गए कि उनके गुरु जी मिल गए i हाल-चाल पूछने लगे i ध्रुव से अपनी गाथा कहे बिना फिर न रहा गया i फिर वही उपदेश शुरू हो गया- बेटा, परिंदे शुक्रगुजार हैं पतझड़ के,तिनके कहां से लाते---अगर सदा बहार रहती i इसलिए "positive " ही सोचो i जितने लोग,उतने प्रवचन i मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी i वह मन से,तन से ऐसे सत्य की ख़ोज में निकल पड़ा जैसे महावीर स्वामी या गौतम बुद्ध निकले हों i संयोग से रास्ते में एक ऋषि मिल गए i सोचा चलो -इन से भी बात कर के देख लिया जाए i जब उसने उन्हें अपनी समस्या बताई तो उन्होंने अपना कमंडल उसके हाथ में थमा दिया और बोले कि किसी ऐसे घर से भिक्षा ले कर आओ जो घर पूरी तरह खुशहाल हो i सोचा कि यही कसर बाकी रह गई थी ,चलो कर लेते हैं i सुबह से शाम हो गई कोई ऐसा घर नहीं मिला i ध्रुव झल्ला उठा i कुछ नहीं है इस दुनिया में i खुशियाँ कम हैं, अरमान बहुत हैं i जिसे भी देखो परेशान बहुत है i करीब से देखो तो रेत का घर है ,मगर दूर से इसकी शान बहुत है ii अपने आप से बातें करता हुआ कब ऋषि के पास पहुंच गया ,पता ही नहीं चला i आँखों में आंसू थे,गला भर्राया था, बोला -ऋषिवर i मुझे तो ऐसा उपाय बता दो कि मैं मौत को गले लगा लूँ i ऋषिवर कुछ नहीं बोले i बस चुपचाप दो बड़े कटोरे पानी के ले आए i एक में खौलता पानी था और एक में ठंडा i बोले -पहले गर्म पानी में अपनी परछाई देखो i उसने उसमें झाँक कर देखा i उसे दिखाई नहीं दी i फिर उन्होंने उसे ठंडे पानी वाला कटोरा दिया i बोले अब देखो i उसे उसमें अपनी परछाई दिख गई i बोले अब तुम घर जाओ i अरे ,अजीब है यह ऋषि i इतनी देर झक मरवाई और अब कह रहे हैं घर जाओ i उसके बिना बोले ही ऋषिवर उसके मन की बात जान गए i बोले ठंडे पानी की भांति अपना मन शांत करो, अपनी परछाई को गहराई से समझो कि उसमें क्या कमी है तुम्हें सफलता का रास्ता जरूर मिल जाएगा i तुम्हारा कल्याण हो i यह सुनते ही वह उनके चरणों में नतमस्तक हो गया i ॠषि वर भी बिलकुल उसी स्वभाव के थे जैसे एक डॉक्टर किसी मरीज़ को दर्द सहने का हौंसला देता है i उन्होंने उसका हौंसला बढाते हुए कहा -बेटा ! तुम युवा हो ,बहुत कुछ कर सकते हो i आत्म-हत्या का विचार छोड़ कर नए सिरे से शुरुआत करो i फिर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए कुछ शायराना अन्दाज़ में बोले-
हिम्मत में जो ताकत है, ज़माने को दिखा दो
सर पक्के इरादे से खुदाई को झुका दो i
तकदीर की तहरीर तो कोई चीज़ नहीं है
तदबीर से तकदीर की तहरीर मिटा दो ii
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