189. कड़वा सच
दुनिया एक मेला है, झगडों का झमेला है घर , बाहर , राजनीति या दफ्तर संसद अथवा टीवी चैनल पर तू-तू, मैं-मैं होती है बहस ज़ोरों से होती है शर्मा जाए लाउडस्पीकर भी क्या लडेगी मोहल्ले की औरत भी जो बहस मर्दों में होती है पुर ज़ोर आवाज़ गूंजती है [ 2 ] कुछ कारण से लड़ते हैं कुछ अकारण ही झगड़ते हैं कुछ अं