140. दुनिया बनाने वाले ! क्या ख़ूब कहते हो [कविता ] https://www.youtube.com/watch?v=C8M02QnD3IQ
https://www.youtube.com/watch?v=C8M02QnD3IQ दुनिया बनाने वाले ! वाह , क्या खूब कहते हो- मिथ्या यह संसार है मानव ! दुखों का भंडार ये मानव मोह क्या करना इसका ' मानव !' छोड़ो जी के जंजाल को मानव क्यूँ रोते हो दुःख में तुम क्यूँ हंसते हो सुख में तुम क्या लाए थे ? जिसको अपना कहते हो तुम ? क्या ले जाओगे ? मोह जिसका रखते हो तुम ? वाह ! प्रभु वाह । अपनी ही बनाई दुनिया में कहते हो -क्यूँ रहते हो मानव तुम ? रचते हो अपने मन से फिर कहते हो मुखारविंद से [ माया जाल ] है "संसार नहीं ये" अपनी ही रचना को ख़ुद कहते हो वास्तविक नहीं , भ्रम-जाल है ये ? पृथ्वी-जीवन की सोचते हो पालन ख़ु