{33} विद्यार्थी जरूर पढ़ें ---भगवद्गीता में सफलता के सूत्र
भगवद्गीता में सफलता के तीन सूत्र बताए गए हैं --------ज्ञान योग, कर्मयोग, भक्ति योग i
१ --ज्ञान योग -
पढ़ने का सही तरीका कि ,समझ कर पढ़ा जाए i ज्ञान हो तो मनुष्य को लक्ष्य प्राप्त करने में देर नहीं लगती i ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों में दो गुण अवश्य होने चाहिएं-{ क }विद्यार्थी को मुमुक्षु अर्थात् ज्ञान की चाहना वाला होना चाहिए i यानि उसमें पूरी लग्न होनी चाहिए i{ ख }दूसरा गुण है-वैराग्य i विद्या चाहने वाले को सुख का त्याग करना ही पड़ता है i संस्कृत में एक श्लोक है-
विद्यार्थी त्यजेत सुखं, सुखार्थी त्यजेत विद्यां i
सुखार्थी कुतो विद्या, विद्यार्थी कुतो सुखं ii
कईं विद्यार्थी पढ़ाई में मन नहीं लगा पाते i गीता के छठे अध्याय में श्री कृष्ण ने स्वयं इस बात को स्वीकार है कि मन नि:संदेह चंचल, बखेडिया,बलवान,हठी यानी जिद्दी है, इसका रोकना ठीक उसी तरह कठिन है जैसे वायु यानी हवा का रोकना i परन्तु अभ्यास से मन की गति रोकी जा सकती है -
असंशयम् महाबाहो मनो दुनिर्ग्रहं चलम् i
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्य्ते ii
श्री कृष्ण का यह संदेश विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है i एक ओर मन वश में कर वे पढ़ाई में ध्यान लगा सकते हैं , दूसरी ओर बार-बार अभ्यास करने से विद्या में निपुणता पा सकते हैं i
२--कर्मयोग--
गीता के दूसरे अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है-
कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन i
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ii
बिना फल की चिंता के कर्म करो, प्रयत्न करते जाओ i जो भी करो , उसमें मन लगाओ i यदि फल की ही चिंता करते रहोगे तो प्रयत्न नहीं कर पाओगे i यही असफलता का कारण बन जाएगा i
मेहनत करना विद्यार्थी का धर्म है i श्री कृष्ण ने हर व्यक्ति का अपने धर्म के अनुसार कार्य को करने को श्रेष्ठ माना है i जब अर्जुन धनुष छोड़ कर पीछे की ओर जा कर बैठ गया था तो उन्होंने कहा कि हे अर्जुन तुम क्षत्रिय हो युद्ध करना तुम्हारा धर्म है,इसलिए उठो और युद्ध करो i
विद्यार्थी को कभी यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि परीक्षा में उसे सफलता मिलेगी या नहीं i
सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ i
पढ़ने का सही तरीका कि ,समझ कर पढ़ा जाए i ज्ञान हो तो मनुष्य को लक्ष्य प्राप्त करने में देर नहीं लगती i ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों में दो गुण अवश्य होने चाहिएं-{ क }विद्यार्थी को मुमुक्षु अर्थात् ज्ञान की चाहना वाला होना चाहिए i यानि उसमें पूरी लग्न होनी चाहिए i{ ख }दूसरा गुण है-वैराग्य i विद्या चाहने वाले को सुख का त्याग करना ही पड़ता है i संस्कृत में एक श्लोक है-
विद्यार्थी त्यजेत सुखं, सुखार्थी त्यजेत विद्यां i
सुखार्थी कुतो विद्या, विद्यार्थी कुतो सुखं ii
कईं विद्यार्थी पढ़ाई में मन नहीं लगा पाते i गीता के छठे अध्याय में श्री कृष्ण ने स्वयं इस बात को स्वीकार है कि मन नि:संदेह चंचल, बखेडिया,बलवान,हठी यानी जिद्दी है, इसका रोकना ठीक उसी तरह कठिन है जैसे वायु यानी हवा का रोकना i परन्तु अभ्यास से मन की गति रोकी जा सकती है -
असंशयम् महाबाहो मनो दुनिर्ग्रहं चलम् i
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्य्ते ii
श्री कृष्ण का यह संदेश विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है i एक ओर मन वश में कर वे पढ़ाई में ध्यान लगा सकते हैं , दूसरी ओर बार-बार अभ्यास करने से विद्या में निपुणता पा सकते हैं i
२--कर्मयोग--
गीता के दूसरे अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है-
कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन i
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ii
बिना फल की चिंता के कर्म करो, प्रयत्न करते जाओ i जो भी करो , उसमें मन लगाओ i यदि फल की ही चिंता करते रहोगे तो प्रयत्न नहीं कर पाओगे i यही असफलता का कारण बन जाएगा i
मेहनत करना विद्यार्थी का धर्म है i श्री कृष्ण ने हर व्यक्ति का अपने धर्म के अनुसार कार्य को करने को श्रेष्ठ माना है i जब अर्जुन धनुष छोड़ कर पीछे की ओर जा कर बैठ गया था तो उन्होंने कहा कि हे अर्जुन तुम क्षत्रिय हो युद्ध करना तुम्हारा धर्म है,इसलिए उठो और युद्ध करो i
विद्यार्थी को कभी यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि परीक्षा में उसे सफलता मिलेगी या नहीं i
सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ i
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ii
इसी प्रकार उन्होंने परीक्षा में असफलता मिलने पर हताश न होने की सलाह दी है i जैसा कि अर्जुन से उन्होंने कहा था -
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्र्चय:
अर्थात् हे अर्जुन ! अगर तुम युद्ध में हार गए तो स्वर्ग जाओगे और यदि जीत गए तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे i इस कथन के अनुसार हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हम परीक्षा में सफल होते हैं तो हम लक्ष्य पा लेते हैं और यदि नहीं तो हमारा ज्ञान हर जगह काम आएगा i बेकार नहीं जाएगा और न जाने कहाँ,किस मोड़ पर हमारी ज़िन्दगी बना देगा i गीता के छठे अध्याय में कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मनुष्य के कर्म और प्रयत्न उसके हमेशा साथ चलते हैं i उसके काम आते हैं i उन्हें कोई नहीं छीन सकता i
"व्यर्थ क्यों चिंता करते हो, किससे तुम डरते हो"-गीता सार के यह शब्द दीवार पर लिख कर सामने टांग लो i यदि फिर भी मन नहीं मानता तो थोड़ी-थोड़ी देर बाद देखो कि कितना समय चिंता में व्यर्थ खोया, और कितने समय पढ़ कर समय का सदुपयोग किया i क्या तुम्हारा डर तुम्हारा नुक्सान तो नहीं कर रहा है ? तुम्हें तनाव तो नहीं दे रहा है ,यदि डरने की बजाय खुद का परीक्षण करो तो कि क्या चीज़ नहीं आती जो डर का कारण बन गया i कहने का भाव है डर उसी से लगता है जो हमारी कमज़ोरी हो ,बस उसे ही पढ़ लो i व्यर्थ क्यों डरना,और बीमार होना i
"व्यर्थ क्यों चिंता करते हो, किससे तुम डरते हो"-गीता सार के यह शब्द दीवार पर लिख कर सामने टांग लो i यदि फिर भी मन नहीं मानता तो थोड़ी-थोड़ी देर बाद देखो कि कितना समय चिंता में व्यर्थ खोया, और कितने समय पढ़ कर समय का सदुपयोग किया i क्या तुम्हारा डर तुम्हारा नुक्सान तो नहीं कर रहा है ? तुम्हें तनाव तो नहीं दे रहा है ,यदि डरने की बजाय खुद का परीक्षण करो तो कि क्या चीज़ नहीं आती जो डर का कारण बन गया i कहने का भाव है डर उसी से लगता है जो हमारी कमज़ोरी हो ,बस उसे ही पढ़ लो i व्यर्थ क्यों डरना,और बीमार होना i
श्री कृष्ण ने हार कर आत्म-हत्या करने को पाप बताया है i ---
अवाच्यवादान्श्र्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता: i
निन्दन्तसत्व सामर्थ्यम् ततो दु:खतरं नु किम् ii
अर्थात् जो लोग हार मान कर काम छोड़ देते हैं या आत्म-हत्या करते हैं ,वे निंदा के पात्र बनते हैं i लोग उनके सामर्थ्य पर सवाल उठाते हैं i सब लोग उसे कायर ही ठहराते हैं i सहानुभूति की उसके लिए कोई जगह नहीं होती i
३- भक्ति -योग - सफलता का तीसरा राज़ है भक्ति i इसका यह अर्थ नहीं है कि पढ़ाई छोड़ कर भक्ति करते रहें i अपितु पढ़ते समय ईश्वर को याद करते रहें और अपनी मेहनत को उसके सुपुर्द कर दें i क्योंकि करने वाला वही सर्वशक्तिमान है i उदाहरण के लिए जब घर में कोई बीमार होता है तो डाक्टर उसका इलाज करता है ,पर ठीक वह ईश्वर की कृपा से ही होता है i डाक्टर तो केवल साधन है i इसी तरह यह सोच कर कि भगवान ने ही ठीक करना है, मरीज़ को डाक्टर के पास न ले जाना भी मूर्खता होगी i इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि "कर्म करना भी ज़रूरी है, और ईश्वर को याद करना भी i
३- भक्ति -योग - सफलता का तीसरा राज़ है भक्ति i इसका यह अर्थ नहीं है कि पढ़ाई छोड़ कर भक्ति करते रहें i अपितु पढ़ते समय ईश्वर को याद करते रहें और अपनी मेहनत को उसके सुपुर्द कर दें i क्योंकि करने वाला वही सर्वशक्तिमान है i उदाहरण के लिए जब घर में कोई बीमार होता है तो डाक्टर उसका इलाज करता है ,पर ठीक वह ईश्वर की कृपा से ही होता है i डाक्टर तो केवल साधन है i इसी तरह यह सोच कर कि भगवान ने ही ठीक करना है, मरीज़ को डाक्टर के पास न ले जाना भी मूर्खता होगी i इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि "कर्म करना भी ज़रूरी है, और ईश्वर को याद करना भी i
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