{35} धन्य धन्य तुम वीर शिवाजी -कविता



 शिवाजी  जयंती - १९ फरवरी, 1630
धन्य,धन्य , तुम धन्य हो , बीजापुर के सामंत शाहजी,
दिए देश को जो तुमने, साहसी, बहादुर ,वीर शिवाजी  i
बाल्यकाल से ही उत्साही बालक ,कितने साहसी काम किये
गौरव-गाथा पढ़कर उनकी, आज  भारतीय धन्य हुए ii

१५ वर्ष की आयु में , कैसे ?
 तोरणा किला  फतह  किया
फिरन्गोज़ी नरसला का कैसे सर झुका दिया i
शिवाजी तुम वीर,साहसी, जल उठा था आदिलशाह
भुन कर जलन की अग्नि में,भेज दिया था  अफज़ल खां ii

 तुम कूटनीति के पारखी शिवाजी
खान का कपट भांप गए
कपड़ों के नीचे क्वच  ले करके  
दाँयी भुजा पर बाघ नकेल
और बांये हाथ में ले कटार तुरंत वहां पर  पहुंंच गए ii
कुछ न कर पाई कटार अफज़ल की,
ज़ालिम दुश्मन ने मुँह की खाई
पंगा लिया वीर के आगे,
 बेमतलब ही मौत बुलाई ii

शिवाजी तुम उत्साही कितने
तनिक न विश्राम किया
बीजापुर की सेना को
 फिर से पीछे  धकेल दिया i
हथियारों,घोड़ों,सैन्य सामानों से
सेना को मज़बूत किया
मुगल बादशाह औरंगज़ेब
 कैसे तुम से  घबरा गया ii

गिरफ्तार कर संभाजी संग, तुम से फिर पंगा लिया
मज़दूर भेष में कैसे तुमने फिर से  उसे चकमा दिया i
मिठाई की टोकरी में पुत्र बिठाया ,मज़दूर बन कर उसे उठाया
तेज़ दिमाग की , तेज़ युक्ति ने
 तेज़ मुगल को कैसे   हराया ii

 वीर योद्धा  शिवाजी तुमने
 अंग्रेज़ों, मुगलों  को   था परेशान किया
जैसे ही उन्होंने  मुँह उठाया
बुरी तरह  से परास्त किया i
तभी तो तुम को हे शिवाजी ! "छत्रपति" खिताब मिला
औरंगज़ेब जैसे दुश्मन ने भी, तुम को था राजा मान लिया ii

अगनित उपलब्धियां और भी हैं 
 हेे  ! तुम  मराठा वीर की
कूटनीति अमर रहेगी ,  तुम से कूटनीतिज्ञ की ii

                   जय-जय शिवाजी !





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