153. दर्द एक पिता का -एक लघु कथा
हिन्दू शास्त्रोंं में माता को पृथ्वी से भारी तथा पिता को आकाश से उच्च माना गया है । पद्मपुराण के 47/12-14 श्लोकोंं में कहा गया है- सर्व तीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता अर्थात माता सब दुखों से छुड्।ने वाला तीर्थ है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है । पिता वह वृक्ष है जो स्वयं धूप की थपेडें सह कर आने वाली कई पीढ़ीयों के लिए फलीभूत होता है । परन्तु अहोभाग्य ! वह वृक्ष की ही भांंति जड व निर्जीव ही समझा जाता है ! समीर जब महज 12 साल का था तब दुर्भाग्य से सैनिक टूकडी के साथ दुश्मनों से लडते-लडते उसके पिता शहीद हो गए । घर मेंं मां, दादी व एक बहन थी । सब के खर्च की जिम्मेवारी उसके कंंधों पर आ गई । उसके पिता की शहादत के बदले उसे हवलदार की छोटी सी नौकरी मिल गई । उसके दिल में हमेशा से ख्वाहिश बनी रही कि वह ऊंचे पद को हाँसिल करे परन्तु कभी ऐसा न हो सका क्यूंकि