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149. मातृभाषा हिन्दी [ 14-सितम्बर ] कविता

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     भारत के  गौरव    की   प्॒स्तुति हिन्दी           इसकी संस्कृति की   प्रशस्ति हिन्दी          अपने देश का राष्ट्र-गान व  उसकी  मधुर  स्तुति है हिन्दी          [ 2 ] विधाता की सौगात भारत को    पुराणों, उपनिषदों की वचना हिन्दी       राम- कृष्ण का मुखारविंद यह सुन्दर  मर्यादा का प्रतिबिम्ब यह        जीने की कला सिखाती है प्रवचन दे कर सुगम सन्मार्ग के    भटके को राह दिखाती है          [ 3 ] ये कथा-रस, ये काव्य–रस ये वीर -रस, ये  हास्य-रस  ये  लेख लेखक का और  उपन्यास ये संधि है, समास यही व्यंजन है, आभास यही ये भारत की मातृभाषा   [ पहचान का अपना ] सांचा यही     [ 5 ] इसी ने तुलसीदास दिए राम-रहीम-कबीर दिए   सुमित्रानंदन, जयशंकर इसी ने प्रसाद महावीर दिए नाम तो ऐसे अनगिनत हैं व एक से एक बढ़ कर हैं जानते नहीं  हम क्योंकि पाश्चात्य सभ्यता से घिरे हुए हैं      [ 5 ] हिन्दी का जैसे ही लोप हुआ  इन  का भी स्मृतिलोप हुआ पढ़ कर देखें यदि उन्हें  हम भाव समझ कर देखें यदि  हम “नहीं खजाना उन सा कोई “  समझेंगे यह  भूल अतिशीघ्र हम       [ 6 ]