ललिता सहस्त्रनाम- हिन्दी व्याख्या- 862- 877

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-----------------------निरुपमा गर्ग

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862. ॐ कार्यकारण निर्मुक्तायै नमः- हे मां ! आप कारण और प्रभाव के

    अधीन नहीं है। अर्थात  "तीनों लोकों में आपके करने योग्य

  कुछ भी नहीं है, न ही ऐसा कुछ है जो पाने योग्य हो, और जो आपको 

   प्राप्त न हो ।

863. ॐ कामकेलि तरङ्गितायै नमः- सती,सुव्रता एवं पतिव्रता आप भगवान शिव के सानिंध्य

 से आनन्दित रहती हैं । 

864. ॐ कनत्कनक ताटङ्कायै नमः- आपने सोने से बने चमचमाते कानों के

       कुंडल पहने हुए हैं । ये कुंडल  साधारण नहीं  हैं अपितु भगवान  शिव को भयंकर

       विष को निगलने के बाद भी अमर करने  की सामर्थ्य रखते  हैं। 

865.ॐ लीलाविग्रह धारिण्यै नमः- आप धर्म की स्थापना के लिए आसानी से नए-नए रूप 

          धारण कर  लेती हैं ।

866.  ॐ अजायै नमः । यद्यपि आप अपना रूप बदलती रहती हैं ,फिर भी  

       आप जन्म और मरण से रहित हैं । 

867.  ॐ क्षय विनिर्मुक्तायै नमः- क्योंकि आप जन्म नहीं लेती अत: आप क्षय अर्थात

       मृत्यु से मुक्त हैं |

868.  ॐ मुग्धायै नमः- हे देवी ! आपकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा मोहित करने 

   वाली है । आप रूप से सुन्दर और मन से इतनी भोली हो कि 

     कभी किसी को दु:खी नहीं देख सकती ।

869. ॐ क्षिप्र प्रसादिन्यै नमः- आप अति शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों 

      की मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं । 

870. ॐ अन्तर्मुख समाराध्यायै नमः- मैं स देवी की स्तुति करती हूँ जो

          अपने भीतर, अपने मन में समाई हुई है,तथा जिनको आंतरिक

            खोज और अन्वेषण के ज़रिए महसूस किया जा सकता है।

871. ॐ बहिर्मुख सुदुर्लभायै नमः- जो लोग भीतर से आपके चरणों का ध्यान नहीं

       करते और इन्द्रिय-सुखों में आसक्त रहते हैं वे आपको प्राप्त नहीं कर सकते ।

872.  ॐ त्रय्यै नमः- हे ऋग्, यजुर् और साम –तीनों वेदों की माता ! आपकी

      जय हो |

873. ॐ त्रिवर्ग निलयायै नमः- आप भूत, वर्तमान और भविष्य के तीनों कारकों में व्याप्त हैं,

874.  ॐ त्रिस्थायै नमः-  "हे देवी, आप सभी त्रय” में, और त्रय आप में  विद्यमान हैं । 

 काल की तीन मात्राएं  (लघु, दीर्घ और मध्यम)तीनों लोक, तीन वेद, तीन विज्ञान

तीन अग्नि, तीन प्रकाश, तीन रंग, तीन गुण,  तीन ध्वनियाँ और तीन आश्रम {ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,

वानप्रस्थ अथवा सन्यास} तीन प्रकार के पितृ  ( वसु, रुद्र और आदित्य ) आदि-

   ये सब आप में ही निवास करते हैं । 

875. ॐ त्रिपुर मालिन्यै नमः- मैं उन देवी भगवती को प्रणाम करती हूं जो तीन लोकों

 (स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल) की स्वामिनी,श्री चक्र  के छठे अवतार की

अधिष्ठात्री देवी,दस महाविद्याओं में से एक  त्रिपुर मालिनी हैं , जिन्हें सर्व रक्षक (सर्वोच्च

 रक्षक) के नाम से जाना जाता है।

876.  ॐ निरामयायै नमः- हे सुखदायिनी ! आप शारीरिक व मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाने वाली हो ।

877. ॐ निरालम्बायै नमः- "मैं उन  देवी को नमन करती हूँ जो किसी पर निर्भर

 नहीं हैंजो सब कुछ में विद्यमान है, और जो सर्वशक्तिमान हैं।"

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