ललिता सहस्त्रनाम-हिन्दी व्याख्या- 790 - 816
------------------------------------------निरुपमा गर्ग
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before Navratri 2025.
790. ॐ परा+ अपरायै नमः- हे मां !आप निर्गुण ब्रह्म अलौकिक, सर्वोच्च, असीम शक्ति
शक्ति हो इसलिए ‘परा’ कहलाती हो आप ब्रह्माण्ड में प्रकृति में विद्यमान
होने के कारण सांसारिक शक्ति अर्थात सगुण ब्रह्म हो इसलिए ‘अपरा’ कहलाती हो ।
आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
791. ॐ सत्य ज्ञानानन्द रूपायै नमः- आप ही सत्य, ग्यान और आनन्द की मूरत हो
आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
792. ॐ सामरस्य परायणायै नमः- आप प्रेम, सामंजस्य, और सद्भाव में रमण करती हो,आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
793. ॐ कपर्दिन्यै नमः- आप घने बालों वाले कर्पद अर्थात भगवान शिव की अर्धांगिनी महाकाली कपर्दिनी के नाम से जानी जाती हो,
795. ॐ कामधुक्यै नमः- आप अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हो,तथा-
796. ॐ कामरूपिण्यै नमः-आप अपनी इच्छानुसार रूप धारण करती हो, आपको नमस्कार, बार-
बार नमस्कार हो ।
797. ॐ
कलानिधये नमः- आप कलाओं की निधि हो, आपको
नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
798. ॐ काव्यकलायै नमः- आप ज्ञान, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हो,
799. ॐ रसज्ञायै नम:- आप शान्ति, दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य आदि सभी रसों की ग्याता हो, तथा-
800. ॐ रस+शेवधये नमः- आप वह जीवन का सार, आनंद, व रस हो जो जीवन को पोषण देता है।" आपको नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
801. ॐ
पुष्टायै नमः- मैं माता ललिता को
नमस्कार करती हूं, जो पोषण और समृद्धि का प्रतीक हैं।"
802. ॐ
पुरातनायै नमः- मैं उन पुरातन देवी को प्रणाम करती हूं जो स्वयं प्रकट
हुई हैं और जिनसे यह समस्त जगत प्रकट हुआ है ।
· 803. ॐ पूज्यायै
नमः- मैं
आप सम्मानित, वंदनीय, और पूजनीय देवी को
प्रणाम करती हूं जो ब्रह्मांड की ऊर्जा और परमात्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं ।
804. ॐ पुष्करायै नमः- हे पुष्करा अर्थात कमल पुष्प के आसन पर विराजमान ! आप भक्तों की पुष्टि करने वाली हो, आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
805. ॐ पुष्करेक्षणायै नमः- हे कमल से नेत्रों वाली कमल-नेत्री ! आपको नमस्कार,
बार- बार नमस्कार हो ।
806. ॐ परम ज्योतिषे नमः- हे परम ज्योति । आपको नमस्कार, बार-
बार नमस्कार हो ।
807. ॐ परम धाम्ने नमः- हे परम धाम में निवास करने वाली !
आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
808. ॐ परमाणवे नमः- आप वह "सूक्ष्म" से भी "सूक्ष्म" अणु हैं जिससे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है अत: ‘परम’ अर्थात सर्वोच्च व ‘अणु’ अर्थात मंत्र जिसे पंचदशी मंत्र से जाना जाता है उसके द्वारा आप वंदनीय हो ।
809. ॐ
परात्परायै नमः- सर्वोच्च, परम शक्ति को नमस्कार, बार-
बार
नमस्कार हो |
810. ॐ पाश हस्तायै नमः- अपने हाथों में पाश (बंधन) धारण करने वाली हे त्रिपुर सुंदरी ! आपको नमस्कार, बार- बार
नमस्कार हो ।
811. ॐ पाशहन्त्र्यै नमः- हे मोह, आसक्ति आदि बंधनों के कारण होने वाले कष्टों को दूर करने वाली शक्ति ! आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
812. ॐ पर मन्त्र विभेदिन्यै नमः- आप सांसारिक भ्रमों से अलग समर्पण, श्रद्धा और प्रार्थना का प्रतीक हो,
813. ॐ मूर्तायै नमः- आप साकार व ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति के रूप में पूजित हो,
814. ॐ अमूर्तायै नमः- आप [ साकार भी हो,] अमूर्त अर्थात निराकार हो तथा
815. ॐ नित्यतृप्तायै
नमः- आप तुष्टि रूप हो अर्थात सदा संतुष्ट रहती हो, आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
816. ॐ मुनिमान सहंसिकायै नमः- आप तपस्वी मुनियों के मन में ऐसे विराजती हो जैसे
तालाब में हंसिका रहती है । आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
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