ललिता सहस्त्रनाम -हिन्दी व्याख्या- 9 71- 985



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------------------------------------             निरुपमा गर्ग

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before Navratri 2025.

971. ॐ सुवा+सिन्यर्चन प्रीतायै नमः- हे अटल-अमर सुहागिन ! सौभाग्यशाली स्त्रियों 

द्वारा की गई पूजा आप को अपार प्रसन्नता देती है। आप मेरे द्वारा की गई पूजा कभी

स्वीकार कीजिए ।    

972. ॐ आ+शोभनायै नमः- [शोभन” अर्थात सुन्दर और आ+शोभन अर्थात अत्यन्त सुन्दर ]
 मैं मां त्रिपुर सुन्दरी की शोभा, सौंदर्य तथा आकर्षण को नमस्कार करती हूं । 
973. ॐ शुद्ध मानसायै नम:- मैं इन्दिय- विजेता एवं चेतना के शुद्धतम रूप को बार-बार
    नमस्कार करती हूं । 
974. ॐ बिन्दु तर्पण सन्तुष्टायै नमः- मैं श्री चक्र के उस मध्य सर्वानंद माया चक्र बिन्दू को 
    प्रणाम करती हूं जहां  पर विराजमान देवी का तर्पण एक विशेष अर्घ्य द्वारा किया जाता है ।
975. ॐ पूर्वजायै नमः- जो सर्वशक्ति मां सृष्टि से पहले की मौजूद हैं उन्हें नमस्कार, 
                बार-बार नमस्कार । 
976. ॐ त्रिपुराम्बिकायै नमः- हे त्रिदेवों की माता त्रिपुराम्बिका ! आप "वह वाम,शिखा,ज्येष्ठा हैं,
  जो त्रिभुजों की निर्माता हैं। रौद्री के रूप में आप ब्रह्मांड को निगल जाती हैं।
 आप परम एकीकृत शक्ति,परमेश्वरी,त्रिपुरा,ब्रह्मा,विष्णु और ईश की स्वयं की आत्मा हैं ।" 
आपको नमस्कार,  बार-बार नमस्कार  हो । 
977. ॐ दशमुद्रा समाराध्यायै नमः- जिनकी पूजा दस प्रकार की अंगुलियों की मुद्राओं 
      के माध्यम से की जाती है, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार । 
978. ॐ त्रिपुराश्रीव शङ्कर्यै नमः- भगवान शिव की अर्धांगिनी, श्री चक्र के पांचवें अवतार 
            के अधिष्ठाता देवता त्रिपुराश्री को बार-बार नमस्कार हो । 
979. ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः- हे ज्ञान मुद्रे ! आप तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे केअग्रभाग से 
   जोड़कर अर्थात ज्ञानमुद्रा से उपासना करने वालों के ज्ञान में वृद्धि करती हो । आपको नमस्कार,
    बार-बार नमस्कार हो ।  
980. ॐ ज्ञान गम्यायै नमः- मैं ज्ञान तक पहुँचाने और समझ प्रदान करने की शक्ति को 
       प्रणाम करती हूं ।      
981. ॐ ज्ञानज्ञेय स्वरूपिण्यै नमः- आप “ज्ञान” अर्थात ब्रह्मका मूल स्वरूपनिरपेक्ष
        सत्य की स्वानुभूति हो । और आप ही ज्ञेय अर्थात आप ही जानने योग्य  परब्रह्म अथवा
    परमात्मा हो, जिसे जानने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । आपको उन्हें नमस्कार, बार-बार
      नमस्कार हो ।   
982. ॐ योनिमुद्रायै नमः- मैं दिव्य प्रजनन उर्जा का प्रतीक, महान रोगों को नष्ट करने
          वाली योनि मुद्रा को बार- बार नमस्कार करती हूं । 
983. ॐ त्रिखण्डेश्यै नमः- मैं उस त्रिखण्डेश्वरी की त्रिखंड मुद्रा को नमस्कार करती हूं जो 
  पंचदशी मंत्र के तीन कूट वाग्भव कूट, कामराज कूट, और शक्तिकूट को दर्शाती है तथा 
  फैली हुई उँगलियाँ सृजन, पालन और प्रलय की ओर संकेत करती हैं।
984. ॐ त्रिगुणायै नमः- "मैं उस त्रिगुण शक्ति को प्रणाम करती हूँ, जो तीन  गुणों 
    (सत्व, रज और तम) की ध्येय हैं अर्थात जिनका लक्ष्य तीन गुणों  को
   संतुलित करना है   ताकि सृष्टि सुचारू रूप से चल सके  ।"
985. ॐ अम्बायै नमः- मैं उस देवी को प्रणाम करती हूं जिनको वाग्देवी ने परमानंद में 
    भावनाओं से अभिभूत होकर “अम्बा” कह कर पुकारा था ।
                                                      अगला लेख---986-1000

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