ललिता सहस्त्रनाम- हिन्दी व्याख्या- 940-955

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    ------------------------------------             निरुपमा गर्ग

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before Navratri 2025.

940. ॐ परा+ मोदायै नमः- जो परम आनंद (आनंद) की प्रतिमूर्ति हैं, उन्हें 

 नमस्कार, बार-बार नमस्कार ।
941. ॐ मनो+मय्यै नमः- प अबाधित मन का अवतार हैं, आपको नमस्कार, बार-बार
नमस्कार ।  
942. ॐ व्योम+केश्यै नमः- जो केशों में आकाश तत्व होने के कारण विराट तथा व्योम केशी 
  कहलाती हैं उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो  ।  
943. ॐ विमान+स्थायै नमः- जो दिव्य आकाशीय रथ पर स्थिर निर्गुण अभिव्यक्ति से परे 
  ब्रह्म अपरिमेय हैं उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो  ।  
944. ॐ वज्रिण्यै नमः- जो हाथ में वज्र धारण करती हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार
     हो  ।  
945. ॐ वाम+केश्वर्यै नमः- जो वामकेश्वर तंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं उन्हें नमस्कार, 
    बार-बार नमस्कार हो  ।  
946. ॐ पञ्च+यज्ञ+प्रियायै नम:- "मैं उन देवी को प्रणाम करती हूँ जिनको 
पाँच यज्ञ- ब्रह्मयज्ञ- (वेदों के जानना), देवयज्ञ-(देवी-देवताओं को प्रसन्न करना), 
पितृयज्ञ- (पूर्वजों का उद्धार करना }, भूतयज्ञ-(पशु तथा अन्य जीवों  की सेवा
 करना ), नर तथा अतिथि यज्ञ-{अतिथियों का सत्कार करना}प्रिय हैं।
947. ॐ पञ्च+प्रेत मञ्चाधि शायिन्यै नमः- जो पांच प्रेत अर्थात शवों पर विराजमान हैं- 
  ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र, तथा सदाशिव । इन पांचों का अस्तित्व मां की दिव्य ऊर्जा की 
     उपस्थिति से ही है अन्यथा ये सब “शव” हैं । 
948. ॐ पञ्चम्यै नमः- मैं उन पंचम देव सदाशिव की पंचम शक्ति को प्रणाम करती हूं 
   जो महान प्रलय के बाद ब्रह्मांड का पुनर्निर्माण करते हैं। 
949. ॐ पञ्च+भूतेश्यै नमः- ब्रह्मांड के पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, 
  और आकाश) की अधिष्ठात्री देवी को बार- बार प्रणाम स्वीकार हो । 
 950. ॐ पञ्च+सङ्ख्योप+चारिण्यै नमः- सृष्टि को जीवन देने वाली जिन पांच तत्वों 
 की अधिष्ठात्री देवी की पूजा पांच तरह के प्रसादों जैसे गंध (चंदन का लेप)
  पुष्प (फूल)धूप (धूप)दीप (प्रकाश) और निवेद्य (भोजन) के माध्यम से 
 धन्यवाद देने के लिए की जाती है, उन्हें बार- बार प्रणाम स्वीकार 
 हो ।  
951. ॐ शाश्वत्यै नमः-. मैं शाश्वत, अनन्त व अपरिवर्तनीय शक्ति को प्रणाम करती
  हूं । 
952. ॐ शाश्वतै+श्वर्यायै नमः- चिरस्थायी धन, वैभव व समृद्धि के अवतार को 
बार-बार प्रणाम हो । 
953. ॐ शर्मदायै नमः- हे श्रमदायिनी ! आप परम आनन्द देने वाली हो । आपको नमस्कार, 
    बार- बार नमस्कार हो । 
954. ॐ शम्भु+मोहिन्यै नमः- आप भगवान शिव को मोहित करने वाली परम पवित्र  
   आकर्षण शक्ति हो । आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो । 
955. ॐ धरायै नमः- हे पृथ्वी को धारण करने व पालन-पोषण करने वाली
    हे त्रिपुर सुन्दरी ! आपको नमस्कार, बार- बार नमस्कार हो ।
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                                             अगला लेख---956-970

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