ललिता सहस्त्रनाम हिन्दी व्याख्या - 1- 29

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-------------------------------------------------निरुपमा गर्ग


1. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीमात्रे नमः ---जो समस्त संसार के दुखों को हर कर अपार सुख देने वाली हैं, 

2. ॐ श्री महाराज्ञै नमः---जो पूरे ब्रह्माण्ड की सम्राग्यी / महारानी  हैं,

3. ॐ श्री मतसिंहासनेश्वयै नमः--जो शेरों के सिंहासन पर विराजमान हैं, तथा-

4.ॐ चिदग्नि कुण्ड सम्भूतायै नमः-- जो शुद्ध चेतना के अग्नि-कुंड में उत्पन्न हुईं हैं, उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

5. ॐ देव कार्यसमुद्यतायै नमः---जो देवताओं के कार्य सम्पन्न करने में तत्पर रहती हैं, 

6. ॐ उद्यद् भानु सहस्राभा +यै नमः--जो हज़ारों उगते सूर्यों की चमक रखती है,

7. ॐ चतुर्बाहु समन्विता+यै नमः-- जो चार भुजाओं वाली मां लक्ष्मी के नाम से 

     जानी जाती हैं, तथा-

8. ॐ रागस्वरूप पाशाढ्या+यै नमः-- जो हाथ में प्रेम की डोर थामे हुए हैंं, उन्हें नमस्कार,

     बार-बार नमस्कार हो ।                                            

9. ॐ क्रोधाकाराङ्कुशो ज्ज्वलायै नमः- जो क्रोध का दण्ड झेलते हुए चमकती हैं,

10. ॐ मनो रूपेक्षु कोदण्डायै नमः– जिनके हाथ में मन का प्रतिनिधित्व करने वाला  

     गन्ने का धनुष है, 

11. ॐ पञ्च तन्मात्र सायकायै नमः--जो पाँच सूक्ष्म तत्वों को बाण के रूप में धारण 

   करती हैं, तथा-

12. ॐ निजारुण प्रभा पूरमज्जद् ब्रह्माण्ड मण्डलायै नमः– जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने लाल

 तेज में डुबो देती है उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

13. ॐ चम्पकाशोक पुन्नाग सौगन्धि कल सत्कचायै नमः--जिनके केश चम्पक,अशोक,  

 पुन्नाग और सौगंधिका पुष्पों से सुशोभित हैं, 

14. ॐ कुरुविन्द मणि श्रेणी कनत्कोटीर मण्डितायै नमः--- जो कुरुविंद रत्नों की पंक्तियों से 

            सुशोभित मुकुट से शोभायमान है, 

 15.ॐ अष्टमी चन्द्र विभ्राज दलिकस्थल शोभितायै नमः– जिनका [ दलिकस्थल ]अर्थात

  मस्तक  [अष्टमी चन्द्र विभ्राज ] अर्थात आठवें चंद्रमा की भांति चमकता है, 

16. ॐ मुख चन्द्र कलङ्काभ मृग नाभि विशेषकायै नमः–जिनके मुख चन्द्र पर  कस्तूरी का

 चिन्ह चमकता है, तथा-

17. ॐ वदन स्मर माङ्गल्य गृह तोरण चिल्लिकायै नमः--जिनकी मांगलीक गृह तोरण के

 समान भौहें चमकती हैं उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

18. ॐ वक्त्र लक्ष्मी परिवाह चलन्मीनाभ लोचनायै नमः-जिनकी आँखें पानी में इधर उधर 

             घूमती हुई मछली के समान  हैं, 

19. ॐ नवचम्पक-पुष्पाभ-नासादण्ड-विराजितायै नमः जिनकी [नासादण्ड ] अर्थात नासिका

 ताजे खिले चंपक के फूल की तरह शोभायमान हैं, 

20.ॐ तारा-कान्ति-तिरस्कारि-नासाभरण भासुरायै नमः–[ नासाभरण ] अर्थात जिनके नाक

 की नथ तारे की कान्ति को भी फीकी करती हैं, तथा-

 21.ॐ कदम्ब मञ्जरीक्लृप्त कर्णपूर मनोहरायै नमः–[ कदम्ब मञ्जरीक्लृप्त ]अर्थात  कदम्ब के पुष्प जिनके कर्णपूर अर्थात कानों में मनोहर लगते हैं उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।

22. ॐ ताटङ्कयुगली भूतत पनोडुप मण्डलायै नमः–जो [ताटङ्कयुगली ] अर्थात सूर्य और चन्द्र

 को बडे झुमकों की जोड़ी  के रूप में पहनती हैं,

23. ॐ पद्म राग शिला दर्श परिभावि कपोलभुवे नमः– जिनके कपोल [गाल] पद्मराग

[ शिलादर्श ] अर्थात  माणिक्य से बने दर्पणों से भी अधिक सुन्दर हैं,

 24. ॐ नव विद्रुम बिम्ब श्रीन्यक्कारि दशनच्छदायै [ ओष्ठ] नमः–जिनके [दश्न्च्छद ]अर्थात

  होंठ सुन्दर[ नव विद्रुम बिम्ब  ]अर्थात  बिम्ब फल से भी अधिक सुन्दर हैंं, तथा-

25. ॐ शुद्ध विद्याङ्कुराकार द्विज पङ्क्ति द्वयो ज्ज्वलायै नमः- [द्विज पङ्क्तिद्वयो ज्ज्वलायै ]

 अर्थात जिनके चमकते हुए दांत [ शुद्ध विद्याङ्कुराकार ] अर्थात शुद्ध ज्ञान की द्योतक हैं, 

       उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो । 

26. ॐ कर्पूर वीटि कामोद समाकर्षि दिगन्तरायै नमः- [ कर्पूर वीटि कामोद ]अर्थात जो कपूर

 से भरे पान का आनंद ले रही है, तथा [ समाकर्षि दिगन्तरायै ] अर्थात जिसकी सुगंध सभी

 दिशाओं से लोगों को आकर्षित कर रही है, 

27.ॐ निज संल्लाप माधुर्य विनिर्भत्सित कच्छप्यै नमः- जो मधुरता में सरस्वती की वीणा 

     से भी बढ़कर हैंं, 

28. ॐ मन्द स्मित प्रभापूर मज्जत्कामेश मानसायै नमः–[ मन्द स्मित प्रभापूर ] अर्थात जिनकी

 मन्द-मन्द मुस्कान की चमक [ मज्जत्कामेश मानसायै ] अर्थात  कामेश (भगवान शिव) के मन

 को भी अपने में डुबा देती है, तथा-

29.ॐ अनाकलित सादृश्य चिबुक श्रीविराजितायै नमः– जिनकी [ चिबुक ] अर्थात ठोड़ी 

अद्वितीय है अर्थात उसकी तुलना किसी चीज से नहीं की जा सकती  । उन्हें नमस्कार, 

  बार-बार नमस्कार हो ।

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