

-------------------------------------------------निरुपमा गर्ग
1. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीमात्रे नमः ---जो
समस्त संसार के दुखों को हर कर अपार सुख देने वाली हैं,
2. ॐ श्री महाराज्ञै नमः---जो पूरे ब्रह्माण्ड की
सम्राग्यी / महारानी हैं,
3. ॐ श्री मतसिंहासनेश्वयै नमः--जो शेरों के सिंहासन
पर विराजमान हैं, तथा-
4.ॐ चिदग्नि कुण्ड सम्भूतायै नमः-- जो शुद्ध चेतना
के अग्नि-कुंड में उत्पन्न हुईं हैं, उन्हें नमस्कार,
बार-बार नमस्कार हो ।
5. ॐ देव कार्यसमुद्यतायै
नमः---जो देवताओं के कार्य सम्पन्न करने में तत्पर रहती हैं,
6. ॐ उद्यद् भानु सहस्राभा +यै
नमः--जो हज़ारों उगते सूर्यों की चमक रखती है,
7. ॐ चतुर्बाहु समन्विता+यै नमः-- जो चार भुजाओं वाली मां लक्ष्मी के नाम से
जानी जाती हैं, तथा-
8. ॐ रागस्वरूप पाशाढ्या+यै नमः-- जो हाथ में
प्रेम की डोर थामे हुए हैंं, उन्हें
नमस्कार,
बार-बार नमस्कार हो
।
9. ॐ क्रोधाकाराङ्कुशो ज्ज्वलायै नमः- जो क्रोध का
दण्ड झेलते हुए चमकती हैं,
10. ॐ मनो रूपेक्षु कोदण्डायै नमः– जिनके हाथ में मन
का प्रतिनिधित्व करने वाला
गन्ने का धनुष
है,
11. ॐ पञ्च तन्मात्र सायकायै नमः--जो पाँच सूक्ष्म
तत्वों को बाण के रूप में धारण
करती हैं, तथा-
12. ॐ निजारुण प्रभा पूरमज्जद् ब्रह्माण्ड मण्डलायै नमः– जो सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड को अपने लाल
तेज में डुबो देती
है उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
13. ॐ चम्पकाशोक पुन्नाग सौगन्धि कल सत्कचायै नमः--जिनके केश चम्पक,अशोक,
पुन्नाग और सौगंधिका पुष्पों से सुशोभित हैं,
14. ॐ कुरुविन्द मणि श्रेणी कनत्कोटीर मण्डितायै
नमः--- जो कुरुविंद रत्नों की पंक्तियों से
सुशोभित मुकुट से शोभायमान
है,
15.ॐ अष्टमी चन्द्र विभ्राज दलिकस्थल शोभितायै नमः– जिनका [ दलिकस्थल ]अर्थात
मस्तक [अष्टमी चन्द्र विभ्राज ] अर्थात आठवें चंद्रमा की भांति चमकता है,
16. ॐ मुख चन्द्र कलङ्काभ मृग नाभि विशेषकायै नमः–जिनके मुख चन्द्र
पर कस्तूरी का
चिन्ह चमकता है, तथा-
17. ॐ वदन स्मर माङ्गल्य गृह तोरण चिल्लिकायै नमः--जिनकी मांगलीक गृह
तोरण के
समान भौहें चमकती हैं उन्हें नमस्कार,
बार-बार नमस्कार हो ।
18. ॐ वक्त्र लक्ष्मी परिवाह चलन्मीनाभ लोचनायै नमः-जिनकी आँखें पानी
में इधर उधर
घूमती हुई मछली के समान हैं,
19. ॐ नवचम्पक-पुष्पाभ-नासादण्ड-विराजितायै नमः– जिनकी [नासादण्ड ]
अर्थात नासिका
ताजे खिले चंपक के फूल की तरह शोभायमान हैं,
20.ॐ तारा-कान्ति-तिरस्कारि-नासाभरण भासुरायै नमः–[ नासाभरण ] अर्थात जिनके
नाक
की नथ तारे की कान्ति को भी फीकी करती हैं, तथा-
21.ॐ कदम्ब मञ्जरीक्लृप्त
कर्णपूर मनोहरायै नमः–[ कदम्ब मञ्जरीक्लृप्त ]अर्थात कदम्ब के पुष्प जिनके कर्णपूर अर्थात कानों में
मनोहर लगते हैं उन्हें
नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो
।
22. ॐ ताटङ्कयुगली
भूतत पनोडुप मण्डलायै नमः–जो [ताटङ्कयुगली ] अर्थात सूर्य और चन्द्र
को बडे झुमकों
की जोड़ी के रूप में पहनती हैं,
23. ॐ पद्म राग शिला दर्श परिभावि कपोलभुवे नमः– जिनके कपोल [गाल]
पद्मराग
[ शिलादर्श ] अर्थात माणिक्य से बने दर्पणों
से भी अधिक सुन्दर हैं,
24. ॐ
नव विद्रुम बिम्ब श्रीन्यक्कारि दशनच्छदायै [ ओष्ठ] नमः–जिनके [दश्न्च्छद ]अर्थात
होंठ सुन्दर[ नव विद्रुम बिम्ब ]अर्थात बिम्ब फल से भी अधिक सुन्दर हैंं, तथा-
25. ॐ
शुद्ध विद्याङ्कुराकार द्विज पङ्क्ति द्वयो ज्ज्वलायै नमः- [द्विज पङ्क्तिद्वयो ज्ज्वलायै ]
अर्थात जिनके चमकते हुए दांत [ शुद्ध विद्याङ्कुराकार ] अर्थात शुद्ध ज्ञान की द्योतक
हैं,
उन्हें नमस्कार, बार-बार नमस्कार हो ।
26. ॐ कर्पूर वीटि कामोद समाकर्षि दिगन्तरायै नमः- [ कर्पूर वीटि कामोद ]अर्थात जो कपूर
से भरे पान
का आनंद ले रही है, तथा [ समाकर्षि दिगन्तरायै ] अर्थात जिसकी सुगंध सभी
दिशाओं से लोगों को
आकर्षित कर रही है,
27.ॐ निज संल्लाप माधुर्य विनिर्भत्सित कच्छप्यै नमः- जो मधुरता में
सरस्वती की वीणा
से भी बढ़कर हैंं,
28. ॐ मन्द स्मित प्रभापूर मज्जत्कामेश मानसायै नमः–[ मन्द स्मित प्रभापूर ] अर्थात जिनकी
मन्द-मन्द मुस्कान की चमक [ मज्जत्कामेश मानसायै ] अर्थात कामेश (भगवान शिव) के मन
को भी अपने में डुबा
देती है, तथा-
29.ॐ अनाकलित सादृश्य चिबुक श्रीविराजितायै नमः– जिनकी [ चिबुक ] अर्थात ठोड़ी
अद्वितीय है अर्थात उसकी तुलना किसी चीज से नहीं की जा सकती । उन्हें नमस्कार,
बार-बार नमस्कार हो ।
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