174 Patriotic Slogans-https://www.youtube.com/watch?v=evLHl1UGPxo
इनमें पहला और सबसे प्रसिद्ध मुकदमा कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज खान पर एक साथ चलाया गया था ।
कारण-ये तीनों जनरल ब्रिटिश आर्मी को छोड कर नेता जी सुभाषचंद्र बोस की फौज़
में शामिल हो गए थे और इन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था । अॅग्रेज़ी हुकूमत ने इन पर
बहस करते हूए अॅग्रेज़ी सरकार से सबूत मांगा तो
वह दे न सकी । तब
सड़कों पर हजारों नौजवानों
ने नारे लगाए-
“लाल किले से आई आवाज़
--- सहगल, ढिल्लो, शाह नवाज़”
क्योंकि प्रेम [हिन्दू], गुरबख्श [सिक्ख] व शाहनवाज़
[मुस्लिम] थे इसलिए सब
कौम एक हो गईं । कौमी एकता का ऐसा नज़ारा देख कर
अंग्रेज़ी हुकूमत के पसीने छूट ग़ए ।
आजाद हिन्दुस्तान में लाल
किले पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर
सबसे पहले जनरल शाहनवाज ने
ही तिरंगा फहराया था ।
देश के पहले तीन प्रधानमंत्रियों ने लालकिले से
जनरल शाहनवाज का जिक्र करते हुए संबोधन की शुरुआत की थी ।
आज भी लालकिले में रोज शाम छह बजे लाइट एंड साउंड का जो कार्यक्रम होता है, उसमें नेताजी के साथ जनरल शाहनवाज की आवाज है ।
=================================================================="स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है,इसे हम ले कर रहेंगे"
=========== बाल गंगाधर तिलक =================
प्रथम विश्व युद्ध 28 July, 1914 में मुम्बई के गवर्नर लॉर्ड लिंग्डन ने
युद्ध परिषद में जब भारतीयों की सहायता मांगी तो तिलक ने बदले में स्वराज
की मांग उठाई । परन्तु गवर्नर की बेरुखी देख कर उन्होने दो टूक कह दिया -
“‘गवर्नर साहब, स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । अगर आप यह शब्द सुनने को तैयार नहीं तो मेरे जैसा भारतीय यहां एक क्षण भी नहीं रुक सकता।”
उसके बाद यह नारा पूर्ण स्वराज मिलने तक गूंजता रहा ।
======================================================================
"जय हिन्द"
========== 'चेम्बाकरमण पिल्लई=======
इन का जन्म 15 सितम्बर 1891
को तिरूवनंतपुरम में हुआ था। देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के
लिए उन्होने कॉलेज के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू दिया था।
सन 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष का अभिवादन “जय हिन्द” से ही किया था जो नेता जी को बहुत पसंद आया था ।
कुछ का मत है कि इस नारे को देने वाले ‘आबिद हसन सफ़रानी’ हैं । लेकिन इनका जन्म तो 11 अप्रैल 1911 को वर्तमान में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त राजधानी हैदराबाद में हुआ था । और चेम्बाकरमण साहब का जन्म 1891 का है ।
इसलिए हम कह सकते हैं कि यह नारे के सृजनकर्ता ‘चेम्बाकरमण पिल्लई” ही हैं ।
==================================================================
“ इंकलाब ज़िन्दाबाद”
== अॅग्रेज़ी हुकूमत से जंग-ए-आज़ादी के मतवालों के “ इंकलाब ज़िन्दाबाद” के नारे को गढ़ने वाले और कोई नहीं बल्कि हसरत मोहानी साहब ही थे ।
इस नारे को भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रेल 1929 को एक आवाज़ी बम फोड़ते वक़्त बुलंद किया था ।
==================================================================="सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है"
अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं ।
लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं ।
रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शेय'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था।
===========================================================
इत्तेहाद इतमाद कुर्बानी
सैय्यद मोहम्मद अहमद ने अंबेडकर कम्युनिटी हाल में सेमिनार को संबोधित करते हूए कहा था कि राष्ट्र हित में सभी के मध्य इत्तेहाद और एतमाद का होना जरूरी है ।
अर्थात- राष्ट्र हित में सभी को अपने भीतर “एकता, आत्मविश्वास व बलिदान देने का जज्बा रखना होगा।
==================================================================
“साइमन गो बैक”
“साइमन कमीशन क्या है ?”
साइमन कमीशन सर जोन साइमन की अध्यक्षता में 3 फरवरी 1928 को भारत आया । साइमन आयोग सात ब्रिटिश सांसदो का समूह था, जिसका गठन भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था ।
लेकिन इसमें किसी भारतीय नेता को सम्मिलित नहीं किया गया । भला भारत हमारा, और संविधान विदेशी बनाएं, यह कैसे हो सकता था ?
अत: 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में भारतीयों ने इसका विरोध किया ।
पुलिस कप्तान सैण्डर्स के आदेश पर एक सिपाही ने लाला लाजपतराय पर लाठी चलाई किया। घायल होनेपर लालाजीने
कहा, ‘‘मेरे शरीर पर पड़े डंडे अंग्रेजी राज्य के कफन में कीलों का काम करेंगे।’’ लाठीचार्ज में उनके सिर पर चोट लगी। वे
कई दिन अस्पताल में भर्ती रहे और 17 नवम्बर को उनका देहांत हो गया और “मेहर अली साहब का नारा “साइमन
गो बैक” ज़ोर पकड गया ।
साइमन कमीशन की चालाकी भरे सुझाव-
(२) केन्द्र में उत्तरदायी सरकार के गठन का अभी समय नहीं आया।
३) केंद्रीय विधान मण्डल को पुनर्गठित किया जाय जिसमें एक इकाई की भावना को छोड़कर संघीय भावना का पालन किया जाय। साथ ही इसके सदस्य परोक्ष पद्धति से प्रांतीय विधान मण्डलों द्वारा चुने जाएं।
इस तरह कमीशन ने केन्द्रीय क्षेत्र में उत्तरदायी शासन के मांग की पूर्ण उपेक्षा की ।
======================================================================
“भारत छोड़ो”
===============महात्मा गांधी===========
भारत छोड़ो आन्दोलन, 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था।
इस आन्दोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था।
यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति
के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था।
===============================================================
“मरो नही मारो”
===========लाल बहादुर शास्त्री जी===========
8 अगस्त 1942 की रात में गांधी जी ने बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया ।
9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुँचकर "मरो नहीं, मारो!" का नारा दे ड्।ला । उधर नेता जी का “दिल्ली चलो” नारा भी ज़ोर पकड रहा था । इस तरह आन्दोलन चरम सीमा तक पहुंच गया ।
===============================================================
“सत्यमेव जयते”
======मदन मोहन मालवीय जी=========
4 फ़रवरी 1922 के चौरीचौरा काण्ड से आहत हो कर चिलचिलाती धूप में
इकसठ वर्ष के बूढ़े मालवीय ने पेशावर से डिब्रूगढ़ तक तूफानी दौरा करके
राष्ट्रीय चेतना को जीवित रखा। कर्म ही उनका जीवन था।
वे सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। उनका यही आदर्श हमारे संविधान का प्रतीक बन गया ।
==============================================================
. वन्दे मातरम !
==================== बंकिम चन्द्र चटर्जी===============
वन्दे मातरम की रचना 7 नवम्बर 1876 में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने संस्कृत में की थी ।
1906 में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया।
14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ हुआ ।
================================================================
दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं
ख़ुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफ़र करते हैं
=======वाज़िद अली=======
वाजिद अली शाह लखनऊ और अवध के नवाब थे।
जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया और नवाब वाजिद अली शाह को
देश निकाला दे दिया, तब उन्होने ‘भावुक हो कर अपनी भावनाएं व्यक्त
की और अपनी शायरी से भारतीयों में जागरुकता उत्पन्न की ।
=================================================================
“विश्व विजयी तिरंगा प्यारा”
======== श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'==========
1923 में काँग्रेस ने 'तिरंगा झंडा' तय कर लिया था पर जन-मन को प्रेरित कर सकने वाला कोई
झंडागीत नहीं था।
श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' जी ने आधी रात को बैठ कर यह गीत लिख ड।ला ।
सन 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसे झंडा गीत के
रूप में स्वीकार किया और उनके साथ मौजूद पांच हजार से अधिक लोगों ने इसे पूरे जज्बे के साथ गाया।
=================================================================
======आवाज़ हमारे भगत की======
इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से
अगर मैं इश्क लिखना चाहूं तो इंकलाब लिखा जाता है
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है,
मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आज़ाद है।
हवा में रहेगी, मेरे ख्याल की बिजली,
ये मुस्ते खाक है फानी रहे, रहे न रहे।
वो
हर व्यक्ति जो विकास के लिए खड़ा है
उसे
हर एक रुढ़िवादी चीज़ की आलोचना करनी होगी
उसके प्रति अविश्वास करना होगा और उसे चुनौती
देनी होगी।
(भगत
सिंह)
=================================================================
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों
का यही बाकी निशा होगा...।’
==================श्री जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’===========================
ये प्रसिद्ध पंक्तियां
उत्तर प्रदेश के उन्नाव के रहने वाले द्विवेदी युग के
कवि श्री जगदंबा प्रसाद
मिश्र ‘हितैषी’ जी की कविता से ली गई हैं ।
इसकी रचना
उन्होंने सन 1906 में शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए की
थी । आज भी सरहद पर हमारे जवान शहीद होते हैं तो इन पंक्तियों को याद किया जाता है ।
==============================================================
मेरा भारत मेरी शान
=====महात्मा गांधी========
"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी,
जिनके लिए भारत एक घर है,
एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।“
- महात्मा गांधी
=================================================================
प्रस्तुति-निरुपमा गर्ग
Comments
Post a Comment