172 गुहार- एक लघु कथा
ये न पूछना कि, ज़िंदगी खुशी कब देती है;
क्योंकि
शिकायत तो उन्हें
भी है, जिन्हें
ज़िंदगी सब कुछ
देती है ।
पत्नी झल्ला उठती । और पति बच कर बाहर निकल जाता । एक दिन
वह भगवान शिव के आगे ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। माता पार्वती को उस पर दया आ गई
। वह भोले नाथ से बोली-हे दु:ख भंजन ! आप इसकी गुहार क्यों नहीं सुनते ? पार्वती की
बात सुन कर भोलेनाथ हंस पडे और बोले- हे पार्वती । यदि मैं इसकी सारी इच्छाएं पूरी
भी कर दूं तो भी इसे शिकायत ही रहेगी क्योंकि इसका स्वभाव ही ऐसा है । शिकायतों का
कोई अंत नहीं । पत्थर कहते हैं कि पानी की मार से टूट रहे हैं हम और पानी
को शिकायत है कि पत्थर हमें खुलकर बहने भी नहीं देते । सूरज़ तपता है तो कहते हैं
जीना दुश्वार हो गया है, और नहीं निकलता तो उसका इंतज़ार करते हैं ।
इसमें कोई संदेह नहीं हम मनुश्य को सब कुछ देने में समर्थ हैं परन्तु
उसको कैसे भोगना है,यह तो मनुश्य पर निर्भर करता है । फिर भी तुम कहती हो तो
आज़ से जो ये मांगेगी वह सब मैं इसे दूंगा । अगले दिन मधुमति सुबह उठ कर फिर
अपने घर के मंदिर में पूजा करने लगी । वह भोलेनाथ से बोली-हे दीनदयाल ! हे प्रनतारति
भंजन । हमारी कब सुध लोगे । ऐसा कहती गई और मन में सोचती गई । उसी दिन उसे
सूचना मिली कि उसके पति की प्रमोशन हो गई और उसकी पगार अच्छी हो गई, रहने के
लिए अच्छा घर भी मिल गया । पति को भी प्रसन्नता में एक दोहा याद आया और वह
मुस्कुरा कर अपनी पत्नी से बोला- मैं न कहता था-
रहिमन चुप होए बैठिए देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें बनत न लगिहें
देर।।
इस तरह हंसी-खुशी उनके दिन बीतते गए । बेट्। कब बड्। हो गया , पता ही नहीं चला । ईश्वर की कृपा से वह अच्छा कमाने लायक हो गया था । मधुमति को उसके विवाह की चिन्ता होने लगी । फिर उसने महादेव से गुहार लगाई । महादेव ने फिर उसकी इच्छा पूरी की । उनके घर अति संस्कारी बहू आ गई । लेकिन मधुमति की शिकायत करने की आदत नहीं गई । वह महादेव से पुत्र की सन्तान मांगने लगी । देखते-देखते उनके घर एक कन्या ने जन्म लिया । मधुमति महादेव से नहीं,अपनी बहू से शिकायत रखने लगी । आए दिन कलह-क्लेश में सारा घर नरक बन गया । सबका गुस्सा सातवें आसमान पर रहने लगा । यह देख महादेव पार्वती से बोले-
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भागता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥
अर्थात-
माया और छाया एक जैसी है इसे कोई-कोई ही जानता है । यह भागने वालों के पीछे ही भागती है, और जो सम्मुख खड़ा होकर इसका सामना करता है तो वह स्वयं हीं भाग जाती है ।
सो क्या कहती हो ? मैं उचित था न पार्वती ! इंसान को चाहे सब कुछ मिल जाए उसके मन में चैन नहीं है । इसका कारण ईश्वर नहीं, इंसान स्वयं होता है ।
वस्तु मिल जाए, उसे सम्भालने का विवेक नहीं
शिक्षा प्राप्त है , तो व्यवहार नहीं
गरीबी हो तो, संतोष नहीं
अमीरत मिले, तो तहज़ीब नहीं
आदर मिल जाए तो कद्र नहीं
परिवार मिल जाए तो संजोने की बुद्धि नहीं
अच्छे रिश्ते जुड जाए तो निभाने का शऊर नहीं
बड्। पद मिल जाए तो नम्रता नहीं
छोट्। मिले तो दिल नहीं
हे पार्वती ! इस संसार मे सबसे प्रबल मन है और मन से प्रबल बुद्धि है । जिस व्यक्ति के पास दोनों संतुलित मात्रा में है वही खुशहाल है । जीवन तो पलों का खेल है । मानव
शिकायतें ही करता रह्ता है पल तीव्र गति से बीत जाते हैं । अन्त में उसके पास एक शब्द रह जाता है- "काश" । काश मैं अपनी ज़िन्दगी हंसी खुशी व्यतीत करता, काश जो कुछ मेरे पास था, उसी का आनन्द ले लेता । ख्वाहिशों का क्या ? वेग से ऊपर उठ भी जाएं, वापिस तो वहीं आकर गिरती हैं । इसलिए-
मसल दो शिकायत दिल ही दिल में
कुछ
हासिल नहीं होता सही या गलत में ।
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