{67} कबीर जयंती- २८ जून
लुप्त हुई कबीर की बानी, भटक गई दुनिया सारी
संत कबीर की सुंदर बानी
[1]
"कबीरा तेरी झोपड़ी, गलकटियन के पास,
जो करेगा सो भरेगा, तू क्यों पड़े उदास।"
अर्थ- दूसरों के बुरे कर्मों से परेशान होने की बजाय, व्यक्ति को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि हर किसी को अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है ।
[2]
कबीरा, गर्व न कीजिये, ऊँचा देखि आवास
काल परौ भुंइ लेटना, ऊपर जमसी घास॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य को अपने ऊँचे आवास (घर, महल, पद, प्रतिष्ठा) को देखकर घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि समय परिवर्तनशील है, और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें जमीन पर लेटना पड़ेगा और तुम्हारे ऊपर घास जम जाएगी।
[ 3]
कबीरा गर्व न कीजिए, कबहू न हँसिये कोय,
अजहुं नाव समुद्र में, न जाने क्या होए
अर्थ-हमें कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए, और न ही किसी का मज़ाक उड़ाना चाहिए। यह जीवन समुद्र में नाव के समान है, और कोई नहीं जानता कि अगले पल क्या हो सकता है।
[4]
जामण मरण विचारि करि कूड़े काम निबारिज़
जिनि पंथू तुझ चालणा सोई पंथ संवारि i
अर्थ- हे मानव! जीवन-मरण का विचार कर अर्थात् यह समझ ले कि जीवन थोड़े दिन का है, अन्तत: मरना है। इसलिए अक्षम्य कर्मों का परित्याग कर और जिस भक्ति मार्ग पर तुझे चलना है, उसे अभी से सुधार ले।
[5]
" मैं-मैं " बड़ी बलाय है, सकै तो निकसी भागि
कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आग
अर्थ- मैंं- मैं [ अहंकार] एक बड़ी मुसीबत है । जितना जल्दी हो सके इसे छोड दो । जैसे रूई में लपेटी हुई आग को ज़्यादा देर तक संभाला नहीं जा सकता है, उसी प्रकार अहंकार को भी ज्यादा देर तक अपने पास नहीं रखा जा सकता । क्योंकि दोनों ही जला कर राख कर सकते हैं ।
[6]
दोस पराए देखि कर चला हसन्त हसन्त
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत i
अर्थ-मनुष्य दूसरों के दोषों को देखकर खुश होता है, लेकिन उसे अपने खुद के दोष याद नहीं आते, जो अनगिनत हैं और जिनका कोई अंत नहीं है ।
[7]
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
अर्थ- बोली एक अनमोल रत्न की तरह है। इसे बोलने से पहले अपने मन में अच्छी तरह से तौल लेना चाहिए।
[8]
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना i
आपस में लड़ी -लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना i
अर्थ-हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।
[9]
झिरमिर-झिरमिर बरसिया , पाहन ऊपर मेंह ,
माटी गलि सैजल भई, पाहन बोही तेह ii
अर्थ-जिस प्रकार हल्की बारिश मिट्टी को भिगो देती है, लेकिन पत्थर पर कोई असर नहीं डालती, उसी प्रकार ज्ञान और सच्चाई के शब्द भी कठोर दिल वालों पर कोई असर नहीं करते । लेकिन कोमल हृदय वाले भावुक हो जाते हैं ।
[ 10 ]
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ i
मैं बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठ ii
अर्थ- जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं, वह कुछ न कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं, जैसे एक गोताखोर गहरे पानी में जाकर मोती ढूंढ लाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के डर से किनारे पर ही बैठे रहते हैं और कुछ भी नहीं पा पाते.
[11]
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
अर्थ- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए ।. तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का ।
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